मलिकाइन के पाती आइल बा। शुरुआते एगो कहाउत से कइले बाड़ी- पोखरा खोनाइल ना, घरियार डलले डेरा। लीं, रउओ पढ़ीं, ऊ का लिखले बाड़ी। पांव लागीं मलिकार। ई वोटवा कहिया ओराई मलिकार। मन अब अगुता गइल बा। फजीरे-फजीरे पांड़े बाबा के दुआर पर धूमगज्जड़ त होते रहता, भर दुपहरिया, केहू ना केहू आवते-जात रहता। अबकी बेर कवनो एगो जनाना तीर छाप पर खड़ा भइल बाड़ी। ऊ त तीन बेर आ भइली। कबो दुपहरिया त कबो सुता रात खानी। दरवाजा पर ढब-ढब-ढब सुन के नीन टूट जाता। पहिले त चोर-छिनार के डर होला, बाकिर बतकही सुन के बुझा जाला कि वोटमंगवा कवनो आइल बा। पहिले खाली भीखमंगवे अइहें सन त केंवाड़ी पीटे लगिहें सन- ए बहुरिया, ए मलकिनी, ए बबुनी- कह के। वोटमंगवा त अइसन केंवाड़ी पीटे लागत बाड़े सन कि बुझाता डकइत आ गइले सन।
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काल्ह काली स्थान गइल रहनी। रउरा त जनबे करीले हम ननरात में नौ दिन उपासे रहीले। काली माई के धूप-दीया देखा के लवटनी। एगो त ओतना दूर भुखाइले गइल आ ऊपर से कड़ाचूर घाम, मन एकदम थाक गइल। ओसरवा में खटिया पर बइठते आंख लाग गइल। एतने में केंवाड़ी ढबढबावे के आवाज आइल। दिन रहे, एह से डेराये के कवनो बात त मन में ना आइल, बाकिर ई बूझे में तनी सोचे के परल कि के हो सकेला।
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पहिले त सोचनी के हजाम केहू के घर के शादी-बियाह के नेवता लेके आइल होई। बाकिर केंवाड़ी खोलते देखनी एक जानी मेहरारू हाथ जोड़ले खड़ा बाड़ी। संगे आठ-दस जाना मर्दाना लोग रहे। लपक के ऊ हमार गोड़ छुए लगली। कहली- चाची हमरा के असीरवाद दीं। हम वोट में तीर छाप से खड़ा भइल बानी। रउरे लोगिन के पतोह हईं। अपना पतोह के लाज राखीं।
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उनकरा संगे अपना गांवों के चार जाना रहले। रउरा त नगेसर के नतिया के चीन्हते होखब नरेशवा के, ऊ कहे लागल- इया, इहां के नीतीश जी के पाटी से खड़ा भइल बानी। गांव के सगरी लोग इहें के वोट देता। अबकी अपना गांव के सगरी वोट झार के इहें के देबे के बा। हमही इहां के कहनी हां कि चलीं, इया से भेंट क लीं। उहां के बात गांव के सगरी मेहरारू माने ली सन।
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बूझ जाईं मलिकार, हमरा त काठ मार गइल। काल्हे ई नतिया ललटेन छाप वाली के संगे आइल रहे आ इहे बतिया उनकरो खातिर कहत रहे। हमहूं होशियार बन गइनी आ कहनी- रउआ दुआर पर आ गइल बानी त हम पकिया रउवे के वोट देब। गांव में जेतना हो सकेला, मेहरारू लोग के वोट रउवा के दिउवा देब। ई सुनते फेर ऊ गोड़ छूए लगली त हम तनी पिछकुड़िया सरक गइनी। हाथ से उनकर दूनू पांजर ध के कहनी- एकर कवनो जरूरत नइखे।
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जानत बानी मलिकार, गांव के लहेंड़िया लड़िकन के बहार आ गइल बा। गांव के बहरी बरम बाबा तर भर दिन बइठल रहत बाड़े सन। जब कवनो वोट वाला गाड़ी लउकत बा, धउर के रोकवावत बाड़े सन आ फेर ओह लोग बुरबक बनावे खातिर घरे-घरे लेके घुमावत बाड़े सन। खरच-बरच वसूल लेत बाड़े सन। एही से जेतना जाना खड़ा भइल बा लोग वोट में, सभकरा मन में लड्डू फूटत बा। सभे ई नौटंकी देख के बूझत बा कि सगरी गांव के वोट पक्का बा।
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लोगवो चालाक हो गइल बा मलिकार। पहिले जेकरा के जबान दे देत रहे लोग, वोट ओही के देव लोग। अब त सभका खातिर एके गो बतकही बा- जाईं ना, सगरी वोट एह गांव के रउवे मिली। हमनी के रउवा आवे के पहिलही तय क लिहले बानी सन कि वोट अबकी रउवे के दियाई।
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अब रउवे बताईं मलिकार कि केकरा-केकरा से दुश्मनी मोल लिहल जाई। केहू के ना कह दीं आ कहीं उहे जीत गइल त बिना मतलब के लफड़ा होखे लागी। एही में कवन एगो ओनियन पोल होला (ओपिनियन पोल के मलिकाइन ओनियन पोल लिखले बाड़ी)। सुनी ले ओइमें रिजल्ट के पहिलहीं बतावल जाला कि के जीतत बा आ के हारत बा। जब लोग वोट में खड़ा भइल लोगन के एह तरे पट्टी पढ़ा सकेला त ओह लोगन के पढ़ावे में कवन दिक्कत बा। सांच कहीं त अब लोग के समझल मुसकिल बा।
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एने पांड़े बाबा के दुआर पर भोरे-भोरे रोज सरकार बनत-बिगड़त बिया। केहू मोदी जी के जीतवावत बा त केहू मोदी जी के हरावता। के मंतरी बनी, कवन विभाग केकरा मिली, सगरी वोट के पहिलहीं लोग फरियावत बा। एही के कहल जाला कि पोखरा खोनाइल ना, घरियार डलले डेरा। थोड़ा लिखना, बेसी समझना। बाकी अगली पाती में।
राउर, मलिकाइन
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