LJP अब NDA से अलग नहीं होगी, 32 से 35 सीटों पर मान जाएगी

0
151
LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) अब NDA से अलग नहीं होगी। BJP चिराग पासवान को मना लेने में कामयाब होती दिख रही है। चिराग पासवान ने 43 सीटों की मांग की है
LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) अब NDA से अलग नहीं होगी। BJP चिराग पासवान को मना लेने में कामयाब होती दिख रही है। चिराग पासवान ने 43 सीटों की मांग की है

पटना। LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) अब NDA से अलग नहीं होगी। BJP चिराग पासवान को मना लेने में कामयाब होती दिख रही है। चिराग पासवान ने 43 सीटों की मांग कर और नीतीश के खिलाफ हल्ला बोल अभियान चलाकर यह संदेह पैदा कर दिया था कि एलजीपी अब एनडीए के साथ नहीं रहेगी। इसी क्रम में एलजीपी की ओर से आ रही सूचनाएं कि 143 सीटों पर पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी और ये उम्मीदवार उन क्षेत्रों में होंगे, जहां जेडीयू के कैंडिडेट होंगे। इसमें सीधे-सीधे चिराग पासवान का नीतीश से टकराव नजर आ रहा था और बीजेपी के प्रति सहानुभूति साफ झलक रही थी।

चिराग ने तो यहां तक कह दिया था कि वह नीतीश के काम पर नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी के काम और नाम पर वोट मांगेंगे। इस पूरे प्रकरण में जेडीयू चिराग पासलान से खार खार खाए बैठा था तो बीजेपी की ओर से किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी।

- Advertisement -

दरअसल चिराग पासवान अपने दम पर नीतीश के खिलाफ मोर्चा नहीं खोले हुए थे। सीटों के बंटवारे में नीतीश की चाल को विफल करने के लिए बीजेपी ने चिराग पासवान को सामने कर दिया था। राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने जिस तरह बीजेपी पर दबाव बना कर बराबर सीटें हासिल कीं और उसे कामयाबी भी मिल गई, उससे उत्साहित होकर जेडीयू की मंशा विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी पर दबाव बनाने की थी। लेकिन जेडीयू इस मुद्दे पर जब तक मुखर होता, उसके पहले ही चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

सड़क, बिजली जैसी योजनाओं की बात कर जहां नीतीश अपनी  उपलब्धियां गिना रहे थे, वहीं चिराग पासवान इन योजनाओं के लिए केंद्र से मिली मदद की सच्चाई लोगों को बताने की कोशिश कर रहे थे। वह यात्रा निकाल कर बिहार के लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि केंद्रीय मदद से इन योजनाओं को अमल में लाया गया। इसमें नीतीश कुमार की सरकार की कोई भूमिका ही नहीं है।

नीतीश कुमार के सात निश्चय कार्यक्रम को चिराग ने यह कह कर खारिज कर दिया कि कार्यक्रम आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन की सरकार के दौरान तय किए गए थे। यानी ये एनडीए के कार्यक्रम नहीं, बल्कि महागठबंधन के कार्यक्रम हैं। सूचनाएं यह मिल रही हैं कि जो चिराग पासवान 43 सीटों की मांग कर रहे थे, अब वे 36 सीटों पर उतर आए हैं। बंटवारे में एक-दो सीटें आगे-पीछे हो सकती हैं। यानी 243 सीटों में 100 सीटें भाजपा को मिलेंगी और जेडीयू को 104 सीटें मिलेंगी। जीतन राम मांझी की पार्टी हम को 4-5 सीटें मिल सकती हैं। यानी 30-35 सीटें चिराग पासवान को मिलती नजर आ रही हैं।

समझा जा रहा है कि चिराग पासवान इस पर मान जाएंगे। एनडीए में दो-तीन दिन के अंदर सीटों के बंटवारे का मामला साफ हो जाएगा। विश्लेषकों का मानना है की बीजेपी अपने भरोसेमंद सहयोगी एलजीपी को लेकर कम से कम उतनी सीटों पर उम्मीदवार उतारना चाहती है, जो जीटीयू और जीतन राम मांझी की सीटों को मिलाकर भी उनसे अधिक हो। और, जैसा माना जा रहा है कि नीतीश के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है, इसका लाभ एनडीए के दो घटक दल एलजेपी और बीजेपी उठा सकें। बीजेपी और एलजेपी की चिंतन धारा भी एक ही है। नरेंद्र मोदी के काम और नाम पर विधानसभा चुनाव में वोट दोनों ही मांगेंगे। अगर एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काम कर गया तो इसका लाभ बीजेपी और एलजेपी उठाना चाहेंगी। उनका पूरा प्रयास होगा कि अपने दम पर वे 122 सीटों का बंदोबस्त कर सकें।

2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को महागठबंधन में 100 सीटें मिली थीं। जिनमें 71 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। आरजेडी 100 सीटों पर लड़ कर 81 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, जबकि 43 सीटों पर लड़ कर कांग्रेस ने 30 सीटें जीती थीं। बीजेपी को 57 सीटों पर जीत मिली थी। इसका अर्थ यह हुआ कि बीजेपी को यह पता है कि सर्वाधिक वोट प्रतिशत के बावजूद वह अपने दम पर सरकार बनाने में सक्षम नहीं है। एक सहयोगी उसे चाहिए ही। सहयोगी भी अति भरोसे का हो।

नीतीश कुमार ने 2015 के चुनाव में या भाजपा की नीतियों का विरोध कर बीजेपी का विश्वास खोया है। यह अलग बात है कि हालात के मद्देनजर भाजपा ने नीतीश को भी झुकने पर मजबूर किया। साथ ही नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की। लेकिन चुनाव बाद का परिदृश्य क्या होगा, इसका अनुमान सीटों के बंटवारे के फार्मूले से ही साफ हो जाएगा।

- Advertisement -