- सुरेंद्र किशोर
क्रिकेट खिलाड़ी एम.एस. धोनी रांची के पास 43 एकड़ जमीन पर जैविक खेती कर रहे हैं। वहां कभी-कभी एम.एस. धोनी खुद भी टैक्टर चलाते हैं। इस तरह वे अनेक लोगों को कैंसरग्रस्त होने से बचाएंगे। ऐसे काम में धोनी जैसी हस्ती लगती है तो अन्य अनेक लोग भी उस ओर आकर्षित होते हैं। रासायानिक खाद व कीटनाशक दवाओं के जरिए पैदा हुए अनाज कौन कहे, फल-सब्जियां भी कैंसरजनित हो रही हैं।
साठ के दशक तक हमारे देश में आम तौर पर जैविक खेती ही होती थी। पर हरित क्रांति के नाम पर हमने जल, मनुष्य व मिट्टी को खतरे में डाल दिया। रासायनिक खाद हरित क्रांति का अनिवार्य अंग है। खैर, सरकारी प्रयासों के साथ-साथ धोनी जैसे समर्थ लोग ही इस खतरे से हमें उबारेंगे। पूर्व राज्यसभा सदस्य आर.के. सिन्हा के भोजपुर जिला स्थित पुश्तैनी गांव में उनकी लगभग 50 एकड़ जमीन में जैविक खेती हो रही है। उत्पाद गुणवत्तापूर्ण है। मैं कभी-कभी उस खेत का उत्पाद खरीदता हूं।
उधर प्राकृतिक चिकित्सा से गंभीरता से जुड़े डा. जेता सिंह भागलपुर में बड़ा प्राकृतिक चिकित्सालय चला रहे हैं- तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सालय। मेरी तो राय है कि एक दिन डा. जेता सिंह अपने चिकित्सालय का विस्तार रांची तक करें। दूसरी ओर धोनी बिहार में भी कभी जैविक खेती का विस्तार करें। उनके पास साधन भी हैं। यह बहुत बड़ी समाज सेवा होगी।
जैविक खेती के काम में इनके अलावा भी अन्य अनेक दूरदर्शी लोग भी लगे हुए हैं। पर जरूरत के अनुपात में यह सब कम पड़ रहा है। साथ ही स्टूडेंट आक्सीजन मूवमेंट के विनोद सिंह चीनी छोड़ने के लिए वर्षों से निरंतर अभियान चला रहे हैं। वे महात्मा गांधी की उक्ति को दुहाराते हुए कहते हैं कि चीनी सफेद जहर है, गुड़ अपनाइए।
मेरी राय में समाजसेवा के क्षेत्र में इससे बड़ा काम नहीं हो सकता कि लोगों को कैंसरग्रस्त होने से रोकने के पहले ही उपाय कर दिए जाएं। यानी प्राकृतिक जीवन पद्धति अपनाई जाए। किंतु ऐसे प्रयासों को केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से भी जरूरत के हिसाब से प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
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