- नवीन शर्मा
महेश भट्ट हिंदी सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में से एक हैं। वे निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर भी हैं। उन्होंने शुरूआती निर्देशन करियर के दौरान यादगार फिल्में दी हैं, जैसे- अर्थ, सारांश, जानम, नाम, सड़क, जख्म।
सारांश से हुआ महेश भट्ट का मुरीदः महेश भट्ट की सारांश पहली ऐसी फिल्म थी, जिससे महेश भट्ट से मेरा साबका पड़ा। ये बहुत ही संवेदनशील फिल्म है। अनुपम खेर और रोहिणी हटंगड़ी ने क्या जबर्दस्त अभिनय किया है। ये दोनों एक बुजुर्ग दंपती की भूमिका में हैं। अनुपम खेर एक रिटायर टीचर हैं। एकदम उसूलों के पक्के। वो एक भ्रष्ट नेता से भिड़ जाते हैं। वे अपने घर में रहनेवाले प्रेमी युगल को वे ताकतवर और बदमाश नेता की धमकी के बाद भी अपने घर से नहीं निकालते, बल्कि उस राजनेता की ऐसी की तैसी करा देते हैं। अनुपम खेर तो वृद्ध की भूमिका में इस कदर जंचे हैं कि एकबारगी यकीन करना मुश्किल होता है कि यह अभिनेता तो एकदम जवान है। यह कहानी यह प्रेरणा देती है कि आपकी राय, सच की ताकत और खुद पर यकीन हो तो आप बहुत ज्यादा ताकतवर व्यक्ति को भी मात दे सकते हैं। अनुपम खेर जब अपने जवान बेटे की अस्थियां लेने जाते हैं तो उस सीन में एक वृद्ध पिता की बेबसी और रोष को वो जिस शिद्दत से निभाते हैं, वैसा मैंने और कहीं नहीं देखा था। इस फिल्म से ही मुझे महेश भट्ट और अनुपम खेर अच्छे लगने लगे।
अर्थ ने दिया हिंदी सिनेमा को नया मुकामः अर्थ को महेश भट्ट की बायोपिक कहना उचित रहेगा। यह उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म है। महेश भट्ट का किरदार कुलभूषण खरबंदा निभाते हैं। शबाना आजमी पत्नी और स्मिता पाटिल प्रेमिका बनी हैं। यह कास्टिंग लाजवाब थी। शबाना और स्मिता में अभिनय के धरातल पर जबर्दस्त मुकाबला। आपको तय करना मुश्किल हो जाएगा की कौन भारी पड़ रहा है। फिल्म निर्देशक बने कुलभूषण खरबंदा का अपनी हीरोइन स्मिता पाटिल से विवाहेतर संबंध रहता है। इसी के इर्दगिर्द कहानी का तानाबाना बुना गया है।
शबाना और स्मिता का इंटेंस अभिनय देख कई बार संवेदनशील आदमी की आंखें नम हो जातीं है। इसकी कहानी तो अच्छी है ही अंत लाजवाब है। जब शबाना पति को छोड़ कर दोस्त बने राजकिरण का हाथ थामने के बजाय एकला चलो का मार्ग चुनती है। इस फिल्म के गाने तो बहुत ही बढ़िया हैं। मेरे प्रिय गजल गायक जगजीत सिंह की शानदार गजल झुकी झुकी सी नजर, तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो और तेरे खत आज मैं गंगा में बही आया हूं इस फिल्म में चार चांद लगा देते हैं।
डैडी बाप और बेटी की कहानीः महेश भट्ट की जिंदगी की ही कहानी का एक हिस्सा डैडी है। इसमें महेश भट्ट की भूमिका अनुपम खेर निभाते हैं और बेटी पूजा भट्ट बनीं हैं। इसमें एक फ्रस्टेटेड पिता की पियक्कड़ बनने और बेटी द्वारा उसे अपने स्नेह से सुधारने की कोशिश का शानदार फिल्मांकन है। अनुपम खेर का अभिनय तो अनुपम है ही, पूजा भट्ट भी कमाल करती हैं। इस फिल्म में तलत अजीज की मखमली आवाज में बेहतरीन गजलें हैं वफा जो तुम से मैंने कभी निभाई होती, कभी ख्वाब में ख्याल में व आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे। यह बेहतरीन गजलें इस बात का प्रमाण हैं कि महेश भट्ट की संगीत की समझ काफी अच्छी है।
जख्म भी महेश की ही दास्तानः अजय देवगन और पूजा भट्ट की फिल्म जख्म भी महेश भट्ट के ही जीवन पर आधारित है। इसमें महेश भट्ट का बचपन और उनकी मां के दर्द को बहुत ही संवेदनशील ढंग से फिल्माया गया है। इसमें पूजा भट्ट ने महेश भट्ट की मां की भूमिका में अपने करियर का सबसे बेहतरीन अभिनय किया है। अजय देवगन भी जंचे हैं। इसके गाने भी लाजवाब हैं जैसे गली में आज चांद निकला।
महेश अब ज्यादातर फिल्मों में निर्माता और लेखक की भूमिका निभाते हैं और बॉक्स ऑफिस पर कमाई करने वाली फिल्मों में काम करते हैं जैसे जिस्म, मर्डर, वो लम्हे। उनके प्रोडक्शन विशेष फिल्मस की यह खासियत है कि उनके बैनर तले बनी फिल्मों के गाने सुपरहिट होते हैं और उनका संगीत अन्य से काफी अलग और कर्णप्रिय होता हैं। भट्ट हमेशा नए टैलेंट को बढ़ावा देते हैं।
पृष्ठभूमिः महेश का जन्म बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। उनके पिता का नाम नानाभाई भट्ट और मां का नाम शिरीन मोहम्मद अली है। भट्ट के पिता गुजराती ब्राह्मण थे और उनकी मां गुजराती शिया मुस्लिम थीं। उनके भाई मुकेश भट्ट भी भारतीय फिल्म निर्माता हैं।
पढ़ाईः उनकी स्कूली पढ़ाई डॉन बोस्को हाई स्कूल, माटुंगा से हुई थी। स्कूल के दौरान ही उन्होंने पैसा कमाने के लिए समर जॉब्स शुरू कर दी थी। उन्होंने प्रोडक्ट एडवरटीजमेंट्स भी बनाए।
शादीः उन्होंने किरन भट्ट (लॉरेन ब्राइट) से शादी की थी जिनसे उनकी मुलाकात स्कूल के दौरान ही हुई थी। इनके दो बच्चे हैं- पूजा भट्ट और राहुल भट्ट। उनके किरन के साथ रोमांस से ही प्रेरित होकर उन्होंने फिल्म ‘आशिकी’ बनाई लेकिन शुरूआती करियर में आई कठिनाईयों और परवीन बॉबी से चले उनके अफेयर की वजह से यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। बाद में भट्ट अभिनेत्री सोनी राजदान के प्यार में पड़ गए और उनसे शादी कर ली। इनके भी दो बच्चे हैं- शाहीन भट्ट और आलिया भट्ट।
करियरः 26 साल की उम्र में भट्ट ने निर्देशक के तौर पर फिल्म ‘मंजिलें और भी हैं’ से अपना डेब्यू किया। इसके बाद 1979 में आई ‘लहू के दो रंग’ जिसमें शबाना आजमी और विनोद खन्ना मुख्य भूमिका में थे, इसने 1980 के फिल्मफेयर अवार्ड्स में दो पुरस्कार जीते। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर औसत से ऊपर प्रदर्शन किया। उनकी पहली बड़ी हिट ‘अर्थ’ थी। इसके बाद उनकी ‘जानम’ और ‘नाम’ को भी काफी पसंद किया गया। ऐसा कहा जाता है कि इन फिल्मों से उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन को पर्दे पर उकेरने की कोशिश की। फिल्म ‘सारांश’ को भी लोगों ने काफी पसंद किया और अनुपम खेर के जीवन की भी यह अहम फिल्म रही। सारांश को 14वें मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी एंट्री मिली थी।
1987 में वे निर्माता बन गए जब उन्होंने अपने भाई मुकेश भट्ट के साथ मिलकर ‘विशेष फिल्मस’ नाम से अपना प्रोडक्शन हाऊस शुरू कर दिया। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के वे जाने माने निर्देशक बन गए जब उन्होंने डैडी, आवारगी, आशिकी, दिल है कि मानता नहीं, सड़क, गुमराह जैसी फिल्में दीं।
भट्ट के अन्य प्रोफेशनल कामः वे मुकेश भट्ट के साथ फिल्म प्रोडक्शन हाऊस ‘विशेष फिल्मस’ के सह-मालिक हैं। वे यूएस नानप्राफिट टीचएड्स के सलाहकार मंडल के सदस्य भी हैं।
प्रसिद्ध फिल्मेः मंजिलें और भी हैं, कब्जा,, आवारगी, जुर्म, आशिकी, स्वयं, सर, हम हैं राही प्यार के, क्रिमिनल, दस्तक, तमन्ना, डुप्लिकेट, जख्म, कारतूस, संघर्ष, राज, मर्डर, रोग, जहर, कलयुग, गैंग्सटर, वो लम्हे, तुम मिले, जिस्म 2, मर्डर 3
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