जयंती पर विशेष
- नवीन शर्मा
आमतौर पर बंदूक व कलम को दो विपरीत ध्रुव मानी जाती हैं। इन दोनों से ही तालमेल बना कर जिस व्यक्तित्व का निर्माण होता है, वह अलहदा होता है। मन्मथनाथ गुप्त भी इस तरह के बेमिसाल व्यक्ति थे, जो यह करिश्मा कर पाए। क्रांतिकारी और लेखक मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता वीरेश्वर विराटनगर (नेपाल) के स्कूल के हेडमास्टर थे। इसलिए मन्मथनाथ ने भी दो वर्ष वहीं शिक्षा पाई। बाद में वे वाराणसी आ गए। प्रसिद्ध क्रांतिकारी और सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त का निधन 26 अक्टूबर 2000 में हुआ।
उस समय के राजनीतिक वातावरण का प्रभाव उन पर भी पड़ा और 1921 में महज 13 वर्ष की आयु में ब्रिटेन के युवराज के बहिष्कार का नोटिस बांटते हुए वे गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हो गई। जेल से छूटने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहाँ से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और मन्मथ पूर्णरूप से क्रांतिकारी बन गए।
वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई थी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी “आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन” को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व 6 अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया।
8 अगस्त को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के घर पर हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में निर्णय लेकर योजना बनी और अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग, जिनमें शाहजहाँपुर से बिस्मिल के अतिरिक्त अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल, बंगाल से राजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी तथा केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), बनारस से चन्द्रशेखर आजाद तथा मन्मथनाथ गुप्त एवं औरैया से अकेले मुकुन्दी लाल शामिल थे; 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए। ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने वाले 10 व्यक्तियों में वे भी सम्मिलित थे। इसके बाद गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और 14 वर्ष के कारावास की सजा हो गई।
मनोविश्लेषण में इनकी काफ़ी रुचि रही है। आपके कथा-साहित्य और समीक्षा दोनों में ही मनोविश्लेषण के सिद्धांतों का आधार ग्रहण किया गया है। काम से संबंधित आपकी कई कृतियाँ भी हैं, जिनमें से ‘सेक्स का प्रभाव’ (प्रकाशन वर्ष: 1946 ई.) विशेष रूप से उल्लेखनीय है। बाद में वे भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से भी सम्बद्ध रहे और आजकल पत्रिका का सम्पादन किया।
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विज्ञान भवन, नई दिल्ली में “भारत और विश्व साहित्य पर प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी” में मन्मथनाथ गुप्त भी उपस्थित थे। एक भारतीय प्रतिनिधि ने जब उनके नेता राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ पर कलम और पिस्तौल के पुरोधा- पं० रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ शीर्षक से एक शोधपत्र प्रस्तुत किया तो मन्मथ जी बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे शाबाशी देते हुए कहा- “क्रान्त जी ने तो आज साहित्यकारों की संसद में भगत सिंह की तरह विस्फोट कर दिया!”
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गुप्त जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखा है। इनके प्रकाशित ग्रन्थों की संख्या 80 के लगभग है। कथा साहित्य और समीक्षा के क्षेत्र में आपका कार्य विशेष महत्व का है। बहता पानी (प्रकाशन वर्ष: 1955 ई.) उपन्यास क्रान्तिकारी चरित्रों को लेकर चलता है। समीक्षा-कृतियों में कथाकार प्रेमचंद (प्रकाशन वर्ष: 1946ई.), प्रगतिवाद की रूपरेखा (प्रकाशन वर्ष: 1953 ई.) तथा साहित्य, कला, समीक्षा (प्रकाशन वर्ष: 1954 ई.) की अधिक ख्याति हुई। ‘भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास”क्रान्ति युग के अनुभव’ ‘चंद्रशेखर आज़ाद”विजय यात्रा’ ‘यतींद्रनाथ दास” कांग्रेस के सौ वर्ष ‘कथाकार प्रेमचंद” प्रगतिवाद की रूपरेखा’साहित्यकला समीक्षा आदि समीक्षा विषयक ग्रंथ हैं। उन्होंने कहानियाँ भी लिखीं।
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