इयारी में बेसा होशियारी ठीक ना होखे। नीतीश जी कम नइखन। बिहार में कमल छाप से दोस्ती आ झारखंड में कुश्ती लड़े के तेयार बाड़े। मलिकाइन पूछले बाड़ी- अइसनो कहीं होला मलिकार। मलिकाइन के पाती में पढ़ीं गांव-जवार के बतकहीः
पावं लागीं मलिकार। ढेर दिन बाद रउरा के हम पाती पठावत बानी। हम जान-बूझ के ना महटिअवले रहनी हैं मलिकार। कबो बरखा त कबो घाम आ बीच-बीच में उसीन देबे वाला ऊमस अइसन कइले रहल हा कि बारी-बारी से घर भर सर्दी-बोखार आ खोंखी से तबाह हो गइल हा। पहिले बड़का के बोखार भइल, ओकरा बाद त मझिला, नन्हका आ आखिर में हमहूं पटका गइनी। सात दिन ले तबाह रहनी हां। गर बइठ गइल रहल हा।
रउरा त जनबे करीले मलिकार कि हम लिख लोढ़ा, पढ़ पत्थर हईं। केहू भेंटाला तबे पाती लिखवा पाई ले। पांड़े बाबा के नतिनिया से लिखवाई ले। एने उहो महीना भर बोखार से तबाह रहल हिया। ना जाने कवन डेंगी बोखार ओकरा हो गइल रहल हा। बड़ी खरचा कइनी हां पांड़े बाबा, तब जाके ऊ ठीक भइल हिया। पांड़े बाबा बतावत रहवीं कि ई बोखार मच्छर के कटला से होला। एह घरी एतना मच्छर भइल बाड़े सन मलिकार कि मत पूछीं। सांझ के बेरा केनहूं बइठीं, मच्छर माटा अइसन झुक जा तारे सन। हम त रोज सांझ होते आंगन में धुआं क देत रहनी हां। तनी राहत मिल जात रहल हा।
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हमहूं का ले के बइठ गइनी। धनरोपनी में तनी देरी भइल हा एह बेरी। बरखा होते ना रहल हा। बाद में जब बरखा भइल हा त रोपनी लोग कइल हा। पहिले त बरखा बिना बीया सूखल हा आ जब बरखा होखे लागल हा त रोपल धान खेते में गल गइल हा। जे बोरिंग चला के बीया गिरवले रहल हा, ऊ लोग से थोर-ढेर लेके बाकी लोग रोपल हा। तीन सौ रुपिया धूर बीया बिकाइल हा मलिकार।
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ए मलिकार, एगो बात पूछे के रहल हा रउरा से। अबकी बेर अपना इहां (बिहार में) तीर छाप आ फूल छाप आपसे में लड़ी का। पांड़े बाबा दू-तीन दिन पहिले बतावत रहवीं कि आपसे में दूनो पाटी में एह बात के खींचाखींची होता कि बिहार के मुखिया के होई। कमल छाप वाला लोग कहता कि नीतीश के अब गद्धी चोड़ देबे के चाहीं। कवनो सुमो जी बानी, उहां के कहतानी कि नीतीश जी ठीक बाड़े। जानत बानी मलिकार, हमरा त ना जाने काहें नीतीश जी ठीक लागेले। दुआरी पर ले पक्की सड़क बनवा दिहले, पहिले संझवत देखावे भर के बिजली आवत रहल हा, अब त चौबीसो घंटा रहत बा। अब घरे-घरे सरकारी पानी पाइप से आई। अपनो गांवे पाइप बिछावे के काम लाग गइल बा। दारू बंद कइला से केतना घर खुशहाल भइल बा, ई रउरा गांवे अइतीं त देखतीं। चोरा-छिपा के अबहूं लोग पीयत बा, बाकिर रोज-रोज के आदत छूट गइल। पीयतो बा लोग त अब मुंह से बकार नइखे फूटत। पहिले त पीके घिरनी अइसन नाची लोग आ अंगरेजी पढ़त रहल हा लोग।
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एतना कइला के बादो उनकर दुसमन कम नइखन। काल्हे पांड़े बाबा के दुआर पर धूमगज्जड़ मचल रहुवे। कई जाना कहत रहुवन कि नीतीश मियां लोग के साथ दे तारे। मोदी जी तीन तलाक बिल पास कइले त नीतीश के लोग मुंह फुला लिहल। कशमीर के मोदी जी टाइट कइले त तीर छाप वाला लोग के खराब लागल। अपना मुलुक में दोसरा मुलुक से आइल लोग के बाछ के निकाले खातिर मोदी जी काम करत बाड़े, ओहू पर तीर छाप वाला लोग के एतराज बा।
नीतीशो जी कम नइखन मलिकार। फूल छाप से इयरगही बा त मिल के चले के चाहीं। सुने में आवता कि बिहार में भले ऊ कमल छाप के संगे बाड़े, बाकिर झारखंड में कमल छाप के खिलाफ चुनाव लड़िहें। एकर माने ई भइल कि बिहार में दोस्ती आ झारखंड में कुश्ती। अइसनो कहीं होला।
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