कांग्रेस को मनाने में जुटीं सपा-बसपा, 15 सीटों के आफर को कांग्रेस ने ठुकराया
- राणा अमरेश सिंह
नयी दिल्ली। प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में एंट्री से पार्टी का हौसला बम-बम है। पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं का जोश सातवें आसमान पर है। प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के साथ सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सभी 80 लोकसभा सीटों पर लड़ने की तैयारी में जोर-शोर से जुट गई है। पार्टी का रोड मैप सूबे में अगली सरकार बनाने को लेकर तैयार हो रहा है। सूबे के युवाओं पर प्रियंका गांधी के चढ़ते जादू के तिलिस्म से सियासी दल विस्मित हैं। दूसरी ओर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने तो कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बता डाला। ऐसे में अगर कांग्रेस इस पर राजी हुई और मिल कर चुनावी मैदान में उतरती है तो फिर सूबे की नतीजे बीजेपी के लिए कठिन हो सकते हैं।
11 फरवरी को प्रियंका गांधी जिस समय सूबे की राजधानी लखनऊ में रोड शो कर रही थीं, ठीक उसी समय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव फिरोजबाद के दौरे पर थे। वे प्रियंका गांधी व कांग्रेस पर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे। अखिलेश यादव के चेहरे पर प्रियंका गांधी की कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में सक्रियता का असर साफ झलक रहा था। उन्होंने मीडिया को बताया कि सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस, आरएलडी और निषाद पार्टी भी शामिल हैं। ठीक एक माह पूर्व 12 जनवरी को सपा-बसपा गठबंधन ने सूबे में कांग्रेस को अगूंठा दिखाते हुए गठबंधन किया था। मायावती और अखिलेश यादव ने संयुक्त प्रेस काफ्रेंस में इसकी जानकारी दी थी।
ठीक एक माह बाद प्रियंका गांधी की राजनीतिक एंट्री के साथ सपा-बसपा के तेवर भी नरम दिख रहे हैं। अब दोनों कांग्रेस के साथ समझौते के मूड में हैं। इसका खुलासा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोमवार को किया। उन्होंने स्वीकार किया कि सपा-बसपा गठबंधन में अगर कांग्रेस भी शामिल होती है तो सूबे में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो जाएगा।
सियासी आंकड़े और जनता के मूड का आकलन करनेवालों की मानें तो अगर यूपी में सपा-बसपा और कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो भाजपा एक अंक में सिमट सकती है। बीजेपी सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से महज 5 सीटों पर सिमट सकती है। सपा-बसपा से जुड़े एक कद्दावर नेता ने बताया कि सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 15 सीटों का आफर दिया गया है। वहीं कांग्रेस ने 15 की बजाय 25 सीटों की मांग की है।
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कांग्रेस को दरकिनार करते हुए गठबंधन का ऐलान किया था। दोनों ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। इसके अलावा दो सीटें गठबंधन के अन्य साथी रालोद के लिए छोड़ा था। वहीं, अमेठी-रायबरेली में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया था।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 73 सीटें मिली थीं और अकेले बीजेपी 71 सीटें जीतने में सफल रही थी। 2014 में भाजपा का वोट शेयर 43.3 फीसदी था। इसके घट कर 36 फीसदी पर सिमट जाने की उम्मीद जताई जा रही है। वहीं, 75 सीटें बीएसपी, एसपी, कांग्रेस और आरएलडी के खाते में जा सकती हैँ। भाजपा 73 सीटों की बजाय महज 5 सीटों पर सिमट सकती है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस 1989 साल के बाद कभी सूबे की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस के लिए सोमवार यानी 11 फरवरी का दिन खुशहाली का था। इस दिन कांग्रेस ने अपने तुरुप के पत्ते के तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा को औपचारिक तौर पर उत्तर प्रदेश में खस्ताहाल हो चुकी पार्टी को उबारने के लिए मैदान में उतार दिया था। सुबह करीब 12.30 बजे लखनऊ के चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट मोड़ से प्रियंका-राहुल का रोड शो शुरू हुआ और दोपहर बाद प्रदेश कांग्रेस दफ्तर पहुंचा। सूबे के कानपुर, उन्नाव, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अमेठी, रायबरेली, बाराबंकी, फैजाबाद से आये कार्यकर्त्ताओं के जत्थे पहुंचे थे। स्वागत के लिए पहुंचे सभी जोश से लबालब दिख रहे थे।
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हिंदी पट्टी के हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रचार में हिंदू मान्यताओं पर आस्था जताते देखे गये। इस तरह से पूर्वी उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी व प्रियंका गांधी वाड्रा ने रोड शो के दौरान काला धागे को टोटके के रूप में इस्तेमाल किया, ताकि वे किसी बुरी नजर से बच सकें। लखनऊ में जिन इलाकों से कांग्रेस के इन दोनों नेताओं का काफिला गुजरा, वहां लोग दिन भर इस मुद्दे पर बात करते मिले।
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कांग्रेस पार्टी 1989 के बाद कभी सूबे की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है। इन 30 सालों में सिर्फ 2009 का चुनाव ऐसा था, जब पार्टी को 21 लोकसभा सीटें मिली थीं। बाकी किसी भी चुनाव में कांग्रेस को महत्वपूर्ण कामयाबी नहीं मिली है। फिलहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के पास सिर्फ 2 सांसद और 6 विधायक और 1 विधान परिषद सदस्य हैं। इससे पार्टी की पतली हालत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
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