- सुरेंद्र किशोर
नेहरू ने मेनन को चुनाव जितवाने के लिए दिलीप कुमार की मदद ली थी। हिन्दी सिनेमा के पहले महानायक दिलीप कुमार का निधन हो गया है। यह संस्मरण उन्हें श्रद्धांजलि है।
‘मैंने पहली बार 1962 में लोकसभा चुनाव में किसी उम्मीदवार के लिए प्रचार किया था। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने मुझे खुद फोन करके कहा था कि क्या मैं समय निकाल कर बम्बई में कांग्रेस के दफ्तर में जाकर वी.के. कृष्ण मेनन से मिल सकता था, जो उत्तरी बम्बई से चुनाव लड़ रहे थे? उनके खिलाफ एक बड़े नेता जे.बी. कृपलानी लड़ रहे थे। जो कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे ।
मैंने पण्डित नेहरू जी की बात का सम्मान किया, क्योंकि आगा जी के बाद मैं सबसे ज्यादा आदर और सम्मान उन्हीं का करता था।’’ दिलीप कुमार के इस प्रसंग का जिक्र है ‘‘दिलीप कुमार वजूद और परछाईं आत्मकथा’’ में। इसकी लेखिका उदयतारा नायर हैं।
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वी.के. कृष्ण मेनन को जितवाना प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के लिए जितना जरूरी था, उतना ही जरूरी था कृपलानी को हरवाना। यही हुआ भी। मेनन विजयी हुए। पर, कांग्रेस ने 1967 में मेनन को टिकट नहीं दिया। जीप घोटाले को लेकर विवादास्पद बने मेमन को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी चाहकर भी 1967 में टिकट नहीं दिलवा सकी थीं। क्योंकि 1969 में कांग्रेस के महा विभाजन से पहले पार्टी पर इंदिरा गांधी की पूरी पकड़ नहीं थी।
कृपलानी कटु सत्य बोलते थे। इसलिए भी नेहरू उन्हें पसंद नहीं करते थे। उन दिनों जवाहरलाल नेहरू जी से दिल्ली जाकर अक्सर मिलने वाले बिहार के एक कांग्रेसी नेता ने मुझसे एक खास बात बताई थी। उससे ठीक पहले कृपलानी की पटना में जन सभा हुई थी। नेहरू जी ने उस कांग्रेसी से पूछा था कि कृपलानी की पटना की सभा में कितनी भीड़ थी?
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