अखबार की ‘साख’ से कभी मत खेलना, कहते थे नरेंद्र मोहन

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लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण में नरेंद्र मोहन के साथ वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं
लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण में नरेंद्र मोहन के साथ वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं
  • निशिकांत ठाकुर

अखबार की ‘साख’ से कभी मत खेलना। यह नसीहत अक्सर ‘दैनिक जागरण’ के प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन जी सहकर्मियों को दिया करते थे। उनके पत्रकारीय गुणों की बड़ी बेबाकी से बयान किया है दैनिक जागरण में वरिष्ठ पदों पर रहे वरिष्ठ पत्रकार निशिकांत ठाकुर ने। उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर लिखा हैः

‘दैनिक जागरण’ के प्रधान संपादक स्व. नरेंद्र मोहन जी मुझे अक्सर समझाते थे कि जिस किसी से मिलो या तो उसे अपना बना लो अथवा उसमें समा जाओ। वह बताते थे कि यदि किसी से मिलते हो और तुममें गुण है, योग्यता है, तो उसे अपने वश में कर लोगे और यदि सामने वाला तुमसे योग्य है तो वह अपने में तुम्हें समा लेगा। लंबे समय तक उनके साथ काम करने के कारण सदैव उनकी बातों को ध्यान में रखना और तदनुसार ज्ञान अर्जित करना मेरा परम लक्ष्य बन गया।

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दूसरी महत्वपूर्ण बात वह बताते थे कि यदि प्रिंट मीडिया को ही अपना करियर बनाना चाहते हो तो उसकी साख (क्रेडिबिलिटी) से कभी मत खेलना। लिखना-पढ़ना सदैव करते रहना। वह इस बात से खुश नहीं होते थे कि कोई पाठक जागरण पर मुकदमा  करे। यदि ऐसा होता था तो वह इसकी जांच स्वयं करते और कहते कि निश्चित रूप से एक पक्षीय समाचार छापा गया है और दूसरे पक्ष से बात नहीं की गई, पाठक के साथ न्याय नहीं किया गया। उनका यह भी आदेश होता था कि जब आप अपने अखबार के लिए बात करेंगे, तो केवल अपनी ही बात करें कि हमारी अमुक-अमुक विशेषताएं हैं और हम इसलिए विश्व के सर्वाधिक लोगों द्वारा पढ़े जाने वाले देश के बड़े अखबारों में से एक हैं। इस क्रम में, यानी अपनी बड़ाई करने या विशेषताएं बताने के दौरान किसी दूसरे अखबार की आलोचना करना उन्हें कतई पसंद नहीं था।

इसी क्रम में जब वह बीमार होकर एम्स दिल्ली में इलाज करा रहे थे तो रोज़ मैं उनसे मिलने अस्पताल जाया करता था। उन्हें देखने के लिए सदैव परिवार के तमाम सदस्य भी मौजूद रहते थे। एक दिन जब उनकी तबीयत काफी खराब थी। परिवार के ही एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘आप इतने बीमार हैं और फिर भी अखबार पढ़ना और संपादकीय लिखना नहीं छोड़ रहे हैं। ठीक है आप अखबार पढ़ते रहिए, लेकिन संपादकीय अब अपने सहयोगियों को लिखने के लिए कहिए।’ इस पर वह बहुत जोर से भड़क गए और कहने लगे, ‘यह लिखना-पढ़ना मेरी धमनियों में बहता रक्त है। लिखना-पढ़ना यदि बंद हो जाएगा तो समझ लेना मेरी धमनियों में बहता रक्त बंद हो गया।’ दिल को दहलाने वाला यह उद्घोष वहां उपस्थित सबको शून्य कर गया और सचमुच वह हुआ। 19 सितंबर को उन्होंने लिखना-पढ़ना छोड़ दिया और 20 सितंबर को उनकी धमनियों में बहता रक्त परम शांति के लिए शांत हो गया।

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वह कहते थे- जिस प्रकार मास्ट हेड पर अखबार का नाम होता है, तो सच में वह वह अखबार होता है, जिस प्रकार तारीख और दिन जो उस दिन  होता है, वही लिखा जाता है। उसी तरह उसमे प्रकाशित होने वाले समाचार पारदर्शी और क्रेडेबल होना चाहिए। झूठ और अतिशयोक्ति के लिए अखबार में कोई जगह नहीं होती। खबरों के लिए समाचार पत्र होता है और अपनी राय रखने के लिए संपादकीय पृष्ठ और उसके सामने का पृष्ठ। इन बातों का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि मेरे कार्यकाल में मैं भी अपनी टीम से यही कहा करता था, और सच मानिए तो इसका पालन सभी दिल से करते भी थे।

अभी अपने पिछले संस्मरण में मैंने हिमाचल लॉचिंग के संदर्भ में उल्लेख किया था। कुछ अच्छी प्रतिक्रियाएं आईं और कुछ बुरी भी। अब भी मैं मानता हूं कि संबंध मिलने-जुलने, बातचीत करने और संपर्क में रहने से ही बना रहता है। बस यही मेरा उद्देश्य था, है और रहेगा। हिमाचल से ‘दैनिक जागरण’ को स्थापित करना, वहां के युवाओं को रोजगार दिलाना मेरा एक सपना था, जो पूरा हुआ और इसलिए वह प्रदेश मेरा प्रिय प्रदेश है।

चलिए, मैं बहुत कुछ आप सबसे कह चुका, अब धर्मशाला यूनिट का ही एक और संस्मरण फिर सुनाता हूं। यह भी आपसी मेल-जोल और अपनेपन की कहानी है। जागरण को स्थायी और मजबूत करने की अचानक स्मृति में आई एक सत्य और अविस्मरणीय संस्मरण है।

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हिमाचल विधानसभा का एक सत्र धर्मशाला में बने नए विधानसभा भवन में होता है। बहुत ही रमणीक स्थान पर बना वह भवन श्रेष्ठ कोटि का है। हिमाचल का विधानसभा जिस दिन प्रारंभ हुआ था, संयोग से मैं वहीं था। रचना गुप्ता शिमला से विधानसभा कवर करने आई थीं।  संपादकीय बैठक के दौरान एक विचार मन में आया जिसे रचना के साथ साझा करते हुए मैंने कहा कि क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम पूरे हाउस को एकत्रित करके उनसे विचार-विमर्श करें और साथ ही बैठकर लंच या डिनर करें (ऐसा करने की सहमति मैंने संजय गुप्त जी से पहले ही ले ली थी)। फिर एक स्वर में सबने अपनी सहमति दी, लेकिन प्रश्न यह खड़ा हुआ कि इतने वीआईपी को किस जगह एकत्र किया जाए। पूरी टीम अब इस बात पर लग गई थी कि धर्मशाला में  कौन सा होटल ऐसा है, जो इतने वीआईपी को एक साथ डिनर करा सके। बहुत से होटल तलाशने के बाद केवल धौलाधार होटल ही एकमात्र ऐसा स्थान मिला, जहां  इतने गणमान्य लोगों को एक साथ डिनर कराया जा सके। मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह थे और विपक्षी दल के नेता प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल। पहले इन दोनों नेताओं से बात की गई। उनकी स्वीकृति के बाद करीब 125 निमंत्रण पत्र बनवाए गए। फिर रचना सहित पूरी टीम विधानसभा जाकर एक-एक विधायक, मंत्रीगण, प्रशासकीय अधिकारियों सहित सबको सादर व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण पत्र देकर आमंत्रित किया गया। शाम में सभी एकसाथ आए और हमारी टीम ने खूब आत्मीयता से उनका स्वागत किया। यह यादगार डिनर था, बिल्कुल राजनीतिक चर्चा से परे। इस खुशनुमा माहौल में कुछ चुटकुले, गप्पबाजी, ग़ज़ल हुए।

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मेल-जोल का उद्देश्य मेरा कोई व्यक्तिगत लाभ-हानि से नहीं था। उद्देश्य महज इतना था कि हिमाचल में जागरण रूपी पौधे को कैसे बड़ा किया जाए, जिसकी छांव में बैठकर सैकड़ों परिवार समृद्ध हो, वह मजबूती से अपनी जड़ें जमा ले, क्योंकि व्यक्ति तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन संस्थान कई पीढ़ियों के लिए सुख-दुख का कारक बनता है। सच में पाठकों से मिली प्रतिक्रिया के हिसाब से ‘दैनिक जागरण’ अब वहां विकास की राह पर निरंतर तेजी से आगे बढ़ रहा है और उससे जुड़े लोग भी समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

(यह संस्मरण अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए तो है ही, साथ ही युवा पत्रकारों को भी इससे कोई लाभ मिल सके)

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