मुन्ना मास्टर बने एडिटर- पत्रकार ओमप्रकाश अश्क की प्रस्तावित पुस्तक हैं। इसे हम लगातार क्रमिक रूप से प्रकाशित कर रहे हैं। गुवाहाटी, रांची, कोलकाता के उनके पत्रकारीय पड़ाव के बाद अगला पड़ाव पटना था। पटना की यादों को समेटे उनकी यादें आप इसमें पढ़ पायेंगे- सार्थक समय
काली के देस कामाख्या (गुवाहाटी) से शुरू हुई पत्रकारिता का रांची के बाद के बाद कोलकाता दूसरा पड़ाव था। यायावरों की तरह फिर एक बार डेरा-डंडा उखाड़ कर अल्पविराम के लिए गांव का रुख किया। तब मुझे भी नहीं पता था कि अगला पड़ाव कहां होगा। हां, हरिवंश जी ने एक बात यह पूछने पर कि अब कहां, जरूर बतायी थी कि तुम्हें प्रेस्टिजियस सेंटर सौंपेंगे। तब रांची ही प्रभात खबर का प्रेस्टिजियस एडिशन माना जाता था। पटना और जमशेदपुर प्रभात खबर के संघर्षपूर्ण दिन थे। जमशेदपुर में अनुज जी (झारखंड संस्कर के मौजूदा संपादक अनुज सिन्हा) उदित वाणी से आगे निकलने के लिए खुद को झोंक चुके थे और इसके सुखद परिणाम भी दिखने लगे थे। धनबाद और देवघर में तब संस्करण खुले नहीं थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि किस प्रेस्टिजियस सेंटर की बात हरिवंश जी ने कही थी।
बहरहाल, हफ्ते-दस दिन की छुट्टी पर कोलकाता (तब कलकत्ता ही था) को अलविदा कह हम सपरिवार अपने गांव सीवान जिले के कैलगढ़ पंचायत के नबीहाता लौट आये। कोलकाता छोड़ने और परिवार की तरह सदस्य बना चुके साथियों को छोड़ कर आने का कितना दुख रहा होगा, यह मेरी तरह परिस्थितियों का कोई दास ही बेहतर बता सकता है या समझ सकता है।
दस-पंद्रह दिनों की छुट्टी बिना किसी सूचना के महीने भर बढ़ा ली। मन इतना उचाट हो चुका था कि सच कहें तो कोलकाता के सदमे से उबरने में देखते—देखते महीना भर का समय गुजर गया। आखिरकार मैं रांची की यात्रा पर एक अनिश्चित ठौर की कल्पना लिये घर से चला। मेरी जेब में बस का किराया चुकाने के बाद पर्स में पांच सौ रुपये का एक नोट था और किराये से बचे फुटकर 20-25 रुपये जेब में थे। बस में चढ़ते-उतरते किसी ने पर्स उड़ा लिया। खैरियत थी कि बस डायरेक्ट नहीं मिली थी और दो किस्तों में यात्रा प्लान की थी। यात्रा का पहला विराम पटना था और फिर वहां से रांची निकलना था।
पटना में बस से उतर कर अगली बस पर बैठने से कुछ खाने के लिए फुटकर तलाशे तो मिल गये, लेकिन पर्स नदारद था। खैरियत थी कि बस पर सवार होने से पहले ही यह पता चल गया, वर्ना बस में सवार होने के बाद कंडक्टर की कैसी प्रतिक्रिया होती, यह सोच कर आज भी मन सहम जाता है। कुछ देर सोचने के बाद एक बुद्धि सूझी, क्यों ने पटना आफिस चलें और वहां से आफिसियल एडवांस लेकर रांची जायें। फुटकर पैसे तो बचे ही थे, इसलिए रिक्शा लिया और पटना में तब के प्रभात खबर के आफिस के पते एसपी वर्मा रोड के लिए चल पड़ा।
एसपी वर्मा रोड का आफिस आखिरी मंजिल पर था। उम्र भी तब 35037 की रही होगी। लिफ्ट थी नहीं, इसलिए सीढ़ियां चढ़ने लगा। सींढ़ियों का कोई अंत नहीं हो रहा था। जब दफ्तर के भीतर पहुंचा तो सबने खैरियत जाननी चाही और बताने में मुझे पांच मिनट का विलंब करना पड़ा। इसलिए कि सांस फूल रही थी, मुंह से आवाज नहीं आ रही थी। प्रभात खबर में आज भी उन दिनों के जो साथी हैं, उनसे जब चर्चा होती है तो वे उस बिल्डिंग की सीढ़ियों को दुःस्वप्न की तरह देखते हैं। एक बार जो ऊपर आ जाता था, फिर उतरता नहीं था। शायद 84 या 89 स्टेप थे, जो बिल्कपल उर्ध्वगामी बने थे।
खैर, उन दिनों पटना के यूनिट मैनेजर थे अभय सिन्हा और एकाउंट्स-फाइनेंस का काम देखते थे निर्भय सिन्हा। अभय जी अभी दैनिक भास्कर के पटना संस्करण में हैं तो निर्भय सिन्हा प्रभात खबर की मुजफ्फरपुर यूनिट देख रहे हैं। मैंने अपनी परेशानी और जरूरत अभय जी को बतायी तो उन्होंने निर्भय सिन्हा को मेरे नाम 200 रुपये एडवांस देने का आदेश दिया। इस बीच शाम हो गयी थी। रात में प्रभात खबर के गेस्टहाउस में ही रुक गया। कोलकाता से आये पिउन प्रमोद वहां रहता था। वह मेरा कोलकाता के दिनों से ही परिचित था। उसने मछली-भात अपने ही हिस्से से काट कर मुझे खिलाया।
अगले दिन निर्भय सिन्हा ने मुझे 200 रुपये दिये और दिन की किसी बस से हजारीबाग के लिए चला। वह बस भी रास्ते में खराब हो गयी। फिर किसी दूसरी बस से चला, जिसे रामगढ़ तक ही जाना था।
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दूध का मुंहजला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है। मैंने किराये के बाद बचे पैसे को एक तरह से ट्ठी में दबा कर रखा। इसलिए एक दिन पहले हादसा हो चुका था। रामगढ़ में बस शाम को पहुंचीष प्यास के मारे दम निकल रहा था तो छह रुपये में मैंने थम्सअप खरीदी और गटक गया। फिर वहां से रांची की यात्रा ट्रेकर से शुरू हुई। मुझे याद है, ट्रेकर वाले ने 15 रुपये किराये लिये और मुझे रात 9 बजे अलबर्ट एक्का चौक (फिरायालाल चौक) पर उतार दिया। इतनी रात कहां जाऊं। आफिस कोकर में था, उतनी दूर पैदल जा नहीं सकता था रात में और 9 बजे के बाद उधर जाने के लिए कोई टेंपो भी नहीं मिला।
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बुद्धि भिड़ायी। कुछ दूर पैदल चल कर लालपुर चौक आ गया। वहां होटल न्यू राजस्थान में पहले प्रभात खबर के नाम पर कई बार ठहर चुका था। वहां लगभग सारे लोग परिचित थे। बंदाबादी हो रही थी और उसी में भींगते मैं वहां पहुंचा। एक कमरा देने को कहा तो उसने तुरंत दे दिया। कमरे में कपड़े बदले और अपने रांची पहुंचने की सूचना हरिवंश जी को होटल के फोन से ही दी। उन्होंने इतने विलंब के बारे में पूछा, फिर अगले दिन आफिस में मिलने को कहा।
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अगले दिन मैं रांची आफिस गया। गोयनका जी और दत्ता जी को भी हरिवंश जी ने बुला लिया। आपस में पटना प्रस्थान का प्लान बनाया और मुझे पटना कूच करने के लिए कह दिया। तब मुझे लगा मेरा अगला पड़ाव पटना ही बनने वाला है, जिसके बारे में हरिवंश जी ने संकेत दिया था कि तुम्हें प्रेस्टिजयस सेंटर सौंपेंगे। (जारी)
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