बिहार में भाजपा को पलटीमार नीतीश कुमार पर भरोसा नहीं

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फाइल फोटो

पटना। भाजपा को नीतीश कुमार या दूसरे घटक दलों पर भरोसा नहीं जम रहा। 2009 कर नीतीश कुमार के जदयू पर आंख मूंद कर भरोसा करती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो मौकों पर जिस तरह नीतीश ने गच्चा दिया, उसे भाजपा चाह कर भी भुला नहीं पा रही।

विधानसभा के दो चुनाव बिहार में भाजपा ने जदयू के साथ मिल कर लड़ा और दोनों ने मिल कर सरकार भी बनायी, लेकिन नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर 2014 का लोकसभा और 2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश के जदयू ने भाजपा से अलग होकर लड़ा। दोनों के परिणाम जदयू के लिए अच्छे नहीं रहे। लोकसभा में जदयू 2 सीटों पर सिमट गयी, जबकि विधानसभा में तो अपने नये साथी राजद के साथ जदयू ने भाजपा को पीछे छोड़ दिया। बताते हैं कि भाजपा को इसी बात से नीतीश कुमार पर संदेह है। यही वजह है कि वह लोकसबा में नीतीश को उतनी सीटें देने के पक्ष में नहीं है, जितनी जदयू चाह रहा है।

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बिहार में घॉक दलों को साधने की कोशिश इसीलिए कर रहे हैं कि किसी को उन पर भरोसा नहीं है। उपेंद्र कुशवाहा कभी नीतीश कुमार पर हल्ला बोलते हैं तो कभी खीर के बहाने नये समीकरण का संकेत देते हैं। जाहिर है कि कोई भी ऐसे में उन पर आंख मूंद कर भरोसा तो करेगा नहीं। राम विलास पासवान एससी-एसटी ऐक्ट के बहाने भाजपा पर आंखे तरेर चुके हैं। यह अलग बात है कि भाजपा ने अपनी सोची-समझी रणनीति के तहत उनके प्रेसर पालिटिक्स की हवा निकाल दी है।

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भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार को विश्वास बहाल करने के लिए अगले विधानसभा चुनाव तक अपनी वफादारी भाजपा के साथ निभानी होगी। अगर उन्होंने ज्यादा चूं-चपड़ नहीं की तो उन्हें आदर्श स्थिति में भाजपा ला सकती है। जैसे विधानसभा चुनाव में भाजपा उन्हें राजद वाले पैटर्न पर सीटें दे सकती है। लोकसभा में उन्हें चुप रह कर भाजपा को वह कीमत चुकानी पड़ेगी, जो भाजपा ने दुर्दिन में राजद से अलग होने के बाद सरकार बनाने में मदद की।

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