अल्पसंख्यक सम्मेलन की खाली कुर्सियां कुछ कह रही हैं नीतीश जी!

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पटना। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के पटना जिला अल्पसंख्यक सम्मेलन का गुरुवार को श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में आयोजन किया गया। आयोजकों को उम्मीद थी कि कार्यक्रम में भारी संख्या में अल्पसंख्यक हिस्सा लेंगे। सच्चाई बड़ी कड़वी निकली। आरंभ से अंत तक हाल की अधिकतर कुर्सियां खाली रहीं। बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद ने इसके लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी। उन्होंने कुर्सियां खाली रह जाने पर खुद को शर्मशार माना। कार्यक्रम में जदयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश कुमार का दाहिना हाथ माने जाने वाले आरसीपी सिंह भी मौजूद थे।

आरसीपी सिंह ने कहा कि भाजपा के साथ जदयू का रिश्ता 1996 से है, लेकिन जदयू की नीतियों पर भाजपा की नीतियों का कोई असर नहीं है। पहले भी नहीं रहा है। उन्होंने अल्पसंख्यकों को आश्वस्त किया कि जब तक जदयू, इसके नेता नीतीश कुमार और भारतीय संविधान का अस्तित्व रहेगा, अल्पसंख्यकों को भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं। उन्होंने प्रसंगवश राम मंदिर निर्माण का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस विवाद के लंबा खिंचने की जड़ में कांग्रेस है।

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राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि नीतीश कुमार या जदयू को कार्यक्रम में अल्पसंख्यकों की कम अनुपस्थिति का अर्थ समझ लेना चाहिए। वह चाहे मजार पर चादरपोशी करें या इफ्तार पार्टियों में शिरकत, अल्पसंख्यकों के मन में पहले जैसा उनके प्रति प्रेम नहीं रह गया है। वह लाख सफाई दे लें या बार-बार बयान दें कि कम्युनलिज्म से कोई समझौता कभी नहीं करेंगे, चाहे उनके साथ कोई भी रहे, इसका कोई खास असर अल्पसंख्यकों के मन मिजाज पर नहीं पड़ने वाला।

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सनद रहे कि नीतीश कुमार अगर हर बार कामयाब होते रहे हैं तो अल्पसंख्यकों का उनके प्रति भरोसा भी इसका एक बड़ा कारण रहा है। कभी कांग्रेस के कट्टर समर्थक अल्पसंख्यक कालांतर में राजद के साथ हो गये थे। लेकिन नीतीश कुमार ने कई मौकों पर अपने आचरण और वाणी से यह साबित कर दिया कि वह अल्पसंख्यकों को नहीं छोड़ सकते। वह अवसर चाहे नरेंद्र मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री होने के नाते बाढ़ राहत का बिहार को भेजा गया पैसा लौटाने का हो या उनके साथ भोज रद्द करना, नीतीश ने अल्पसंख्यकों की भावनाओं को तरजीह हमेशा दी है। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार जब भाजपा ने बनाया तो नीतीश ने भाजपा से रिश्ता ही तोड़ लिया। उनके इन कदमों को अल्पसंख्यकों ने सिर आंखों पर रखा और लगातार उन्हें अपना समर्थन दिया। जिला अल्पसंख्यक सम्मेलन में कम उपस्थिति यह दर्शाती है कि अल्पसंख्यकों में नीतीश के प्रति आकर्षण का ग्राफ गिरा है।

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