- दीपक कुमार
पटना। आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में सभी दल अपनी तैयारियों में जुट गये हैं। तैयारी का आलम यह है कि दो गठबंधनों की धुरी पर खड़े बिहार में दलीय तैयारियों से लगता है कि कोई गठबंधन नहीं, बल्कि सबकी अपनी-अपनी तैयारी है। भाजपा सभी 40 सीटों के हर बूथ तक पहुंचने की रणनीति पर काम कर रही है। हर चुनावी क्षेत्र की समीक्षा कर रही है। कांग्रेस ने सम्मेलन बुलाया है। राजद ने भी नंबर के आखिर या दिसंबर के पहले हफ्ते में महागठबंधन का महासम्मेलन बुलाने की घोषणा की है। इन सबके बीच नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड (जदयू) चुपचाप अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। उसकी कोशिश पुराने ही पैटर्न पर हर वर्ग के वोट को झटकने की है।
जदयू के वरिष्ठ नेता और सांसद आरसीपी सिंह राज्यभर का दौरा कर पार्टी का अलख जगा चुके हैं। नीतीश कुमार ने कल अल्पसंख्यकों के एक कार्यक्रम में यह साफ कर दिया कि अल्पसंख्यकों के प्रति उनकी नीयत और नीति में कोई परिवर्तन न पहले कभी हुआ और न कभी होगा, भले वह किसी के साथ रहें। जाहिर है कि उनका इशारा मुसलमानों के बीच संदेह की नजर से देखी जाने वाली भाजपा की ओर था, जिसके साथ पहले भी सरकार चलाते हुए उन्होंने न सिर्फ गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आई बाढ़ पीड़ितों के लिए मदद के पैसे ठुकरा दिये थे, बल्कि एक मौके पर उनके साथ आयोजित भोज ऐन मौके पर रद्द कर दिया था। इससे भी एक कदम वह आगे तब निकल गये, जब मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाये जाने पर भाजपा से किनारा ही कर लिया। राजद के साथ महागठबंधन किया तो यह अल्पसंख्यकों के अनुकूल ही था।
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नीतीश कुमार को आमतौर पर समझ पाना बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी मुश्किल काम है। नयी पारी भाजपा के साथ उन्होंने शुरू की तो कई लोगों ने यह कयास लगाया था जदयू ने अपने अस्तित्व पर सवाल खड़े कर लिये हैं। लेकिन नीतीश ने यह साबित कर दिया है अपने बयानों और आचरण दोनों से कि उनकी नीति और नीयत में भाजपा के साथ रह कर भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। कुछ ही महीनों पहले उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि कम्युनलिज्म और क्राइम से वह कोई समझौता नहीं करेंगे। कल भी उन्होंने इंडो इस्लामिक संगठन के एक कार्यक्रम में यही संदेश दिया कि कौन साथ है, इसकी परवाह किये बगैर वह काम करते हैं। यानी भाजपा की अल्पसंख्यक नीति चाहे जो हो, उनका मकसद अल्पसंख्यकों का विकास और कल्याण ही है। इसके समर्थन में उन्होंने अल्पसंख्यक हितों के बारे में कई घोषणाएं भी कीं।
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दलितों के कल्याण के लिए नीतीश की चिंता तो पहले से ही जगजाहिर है। उन्होंने उनके बीच विकास की गति तेज करने और वाकई जरूरतमंद की तलाश के लिए दलितों की दो श्रेणियां- दलित और महादलित की बनाई थीं। आज भी वह दलित-पिछड़ों के विकास के लिए आवासीय योजना, स्कालरशिप योजना जैसे कई कल्याणकारी कार्य दलित-पिछड़ों के लिए कर लरहे हैं।
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उनकी रणनीति का एक हिस्सा युवाओं को साधना भी है। युवाओं को केंद्र कर न सिर्फ नौकरियों के अवसर लगातार सृजित किये जा रहे हैं, बल्कि पढ़ाई के लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड जैसी योजना का शुभारंभ और इसे अनुकूल बनाने के लिए उन्होंने काफी काम किये हैं।
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दरअसल नीतीश कुमार उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, लालू यादव और रामविलास पासवान की तरह अपने को महज जाति विशेष का नेता बनने से परहेज कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि हर वर्ग का वोट उन्हें मिले, इसके लिए हर वह उपाय करना, जिससे मतदाता उनकी ओर झुके। कुशवाहा बिरादरी को उन्होंने अपने आवास पर बुला कर उन्हें एहसास कराया कि वे उनके करीब हैं। दलितों, अल्पसंख्यकों, युवाओं, महिलाओं के संगठन खड़े कर उन्होंने इनसे नजदीकी साधने की शुरुआत कर दी है। बाकी दलों से नीतीश एक मायने में सबसे आगे और अलग दिखते हैं कि वह हर पाकेट में अपना जनाधार बना रहे हैं, बाकी कुछ खास तबके तक ही अपने को सीमित रखे हुए हैं। राजद पर यादवों का मुलम्मा चढ़ा है तो कांग्रेस सवर्ण में अपनी संभावना तलाश रही है। पासवान और नीतीश महज दलितों के हितैषी होने तक अपने को सीमित रखना चाहते हैं। भाजपा के तो पारंपरिक वोट हैं, लेकिन सत्ता विरोधी वोट तो कटेंगे ही, जो हर सरकार के कार्यकाल में उसके खिलाफ स्वतः तैयार हो जाते हैं।
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नीतीश कुमार का निशाना अगर सटीक बैठता है तो वह वाकई बिहार में बड़े भाई की अपनी औकात साबित कर सकते हैं। उनका लक्ष्य 18 से 39 साल की उम्र वाले तकरीबन 55 प्रतिशत वोटरों को साधने का है। महिलाओं में तो वह पहले से ही लोकप्रिय रहे हैं। शराबबंदी के बाद महिलाओं में उनकी लोकप्रियता काफी है। एजुकेशन लोन और स्लारशिप-प्रोत्साहन राशि के कारण युवाओं के करीब जाने की उन्होंने कवायद पहले से ही शुरू कर दी है। इतना ही नहीं, युवाओं के सम्मेलन में जब एक सवर्ण ने उनकी ओर चप्पल उछाली तो पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसे माफी देकर नीतीश ने एक तीर से दो निशाना साधा। पहला यह कि सवर्णों के प्रति उनके मन में कोई नफरत नहीं है, दूसरे युवा वर्ग उन्हें अपना दुश्मन न समझे।
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