पटना। पखवाड़े भर पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने इतराने के जिस अंदाज में दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर घोषणा की कि भाजपा और जदयू बिहार में बराबर-बराबर लोकसभा सीटों पर लड़ेंगी तो एकबारगी यही लगा था कि बिहार एनडीए ने बड़ी आसानी से घटक दलों में सीटों के बंटवारे का मामला सलटा लिया है, लेकिन हालात पहले से भी भयावह दिखने लगे हैं। एनडीए के एक घटक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने इसी बीच राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी से मुलाकात की। कुछ ही दिनों बाद वह भाजपा के नेता भूपेंद्र यादव से मिल कर प्रेस कांफ्रेंस कर बैठे और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। पत्रकारों के कुरेदने पर पीड़ा भी छलकायी। उसका लब्बोलुआब यह था कि एनडीए सिर्फ लोकसबा चुनाव के लिए नहीं है। बिहार में उनके दल को सरकार में कोई भागीदारी नहीं दी गयी। दो सीटों पर जीतने वाले जदयू को एनडीए में भाजपा अपने बराबर का दर्जा दे रही है, जबकि उससे अधिक सीटें लाने के बावजूद उन जैसे लोगों से मशविरा तक नहीं किया गया। उपेंद्र कुशवाहा इतने तक नहीं माने और जाकर लोजपा के रामविलास पासवान से भी मिल आये।
नीतीश के बारे में उन्होंने बयान दिया कि 2020 के बाद वह मुख्यमंत्री नहीं रहना चाहते हैं। इस पर किसी प्रसंग के बहाने नाम लिये बगैर नीतीश ने उन्हें नीच कह दिया। अगले ही दिन उपेंद्र कुशवाहा समर्थकों पर पटना में जम कर बिहार पुलिस ने लाठियां बरसायीं। इससे जितना गुस्सा कुशवाहा को आया होगा, उससे कहीं ज्यादा दर्द आरजेडी को हुआ। आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने इसकी खूब आलोचना की।
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ताजा स्थिति यह है कि उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के खिलाफ जबरजस्त मोरचा खोल दिया है। अब वे यह कह रहे कि रालोसपा और लोजपा भाजपा के पुराने साथी हैं। यही वजह है कि अमित शाह ने भाजपा और जदयू की बराबरी की बात कही, सीटों की संख्या पर वह चुप रहे।
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कुशवाहा का दावा है कि उनकी पार्टी ने पिछली बार तीन सीटें जीती थीं। इस पर उनकी पार्टी का जनाधार भी बढ़ा है। इसलिए तीन से अधिक सीटें तो मिलनी ही चाहिए। वह लोजपा को साथ रख कर अगर बात करते हैं तो इसके पीछे मकसद साफ है। लोजपा ने भी तकरीबन इसी स्वर में सीटों की बात की है। लोजपा नेता पशुपति पारस का कहना है कि पिछली बार से कम सीटें तो कत्तई मंजूर नहीं। यानी बिहार एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं है। सीटों का पेंच अब भी फंसा हुआ है।
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