बिहार में विपक्ष को बैठे बिठाये चुनावी मुद्दे मिल गये हैं

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बिहार में एनडीए और महागठबंधन ने काफी खिचखिच के बाद सीटों का बंटवारा कर लिया है। महागठबंधन ने घटक दलों को सीटों की संख्या के बारे में बता दिया है।
बिहार में एनडीए और महागठबंधन ने काफी खिचखिच के बाद सीटों का बंटवारा कर लिया है। महागठबंधन ने घटक दलों को सीटों की संख्या के बारे में बता दिया है।

PATNA : बिहार में विपक्ष को बैठे बिठाये चुनावी मुद्दे मिल गये हैं। सीसीए, एनआरसी और एनपीआर जैसे मुद्दे पहले से ही विपक्ष के हाथ लग गये थे। अब सुप्रीम कोर्ट का प्रमोशन में आरक्षण से इनकार का मुद्दा भी हाथ लग गया है। आरक्षण का मुद्दा बिहार में चुनावी नफा-नुकसान का बड़ा कारण बनता रहा है। कभी मंडल-कमंडल के कारण लालू प्रसाद को बिहार की गद्दी मिली तो आरक्षण के नाम पर ही 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन को जीत हासिल हुई। इस साल बिहार में फिर विधानसभा के चुनाव होने हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए प्रमोशन में आरक्षण से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। 2015 के चुनाव को याद करें तो आरक्षण ही एक ऐसा मुद्दा था, जिसके बल पर लालू प्रसाद यादव ने पूरे चुनाव के दौरान भाजपा के खिलाफ हवा बनाई और आखिरकार आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस का गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ गया।

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उस वक्त आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सिर्फ यही कहा था कि आरक्षण की जो व्यवस्था है, इसमें समीक्षा की जरूरत है। लेकिन लालू प्रसाद ने इसे इस रूप में प्रचारित किया कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण समाप्त करना चाहती है। इसका लाभ भी आरजेडी और जेडीयू गठबंधन को मिला, जिसे तब महागठबंधन का नाम दिया गया था। महागठबंधन में प्रमुख रूप से आरजेडी और जेडीयू के अलावा कांग्रेस भी शामिल थी।

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वैसे भी यह कहा जाये कि विपक्ष के लिए इन दिनों हवा अनुकूल होती जा रही है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। एग्जिट पोल के हिसाब से दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पराजय की अटकलें इतनी तेज हैं कि इसका लाभ आने वाले समय में जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, वहां पर पड़ना स्वाभाविक है। इसी साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है और अगले साल बंगाल में। इन दोनों राज्यों के चुनाव में विपक्ष इन मुद्दों को भुनाएगा। बिहार में आरक्षण वाले का मुद्दे का सर्वाधिक असर हो सकता है।

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बिहार की बात करें तो सीसीए, एनपीआर और एनआरसी ने जिस तरह से लोगों को गोलबंद किया है, उसमें अल्पसंख्यक वोट या मतदाता भाजपा या उसके साथ बने किसी भी गठबंधन के खिलाफ जाने की स्थिति में हैं। अपने आप इसका फायदा विपक्ष उठा सकता है। दूसरी स्थिति आरक्षण ने पैदा कर दी। दिल्ली चुनाव में अगर  आम आदमी पार्टी की दोबारा वापसी हो जाती है तो इससे विपक्ष का मनोबल और बढ़ेगा। 2019 में जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उसमें भाजपा की हालत पतली रही। हरियाणा में किसी तरह भाजपा ने सरकार बना ली, पर महाराष्ट्र और झारखंड में इसकी दाल नहीं गली। और अगर दिल्ली भी भाजपा के हाथ से निकल जाती है तो विपक्ष को नयी ऊर्जा मिलेगी। इन मुद्दों ने देश भर में जो हालात पैदा किये हैं या आगे करेंगे, उसमें लगता है कि भाजपा के साथ बना कोई भी गठबंधन कामयाब हो जाये, इसकी कोई गारंटी नहीं। बिहार में जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी को लेकर बना एनडीए अगर विधानसभा चुनाव में मात खा जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

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