- सुरेंद्र किशोर
पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी है नागरिक रजिस्टर। यह जानते हुए भी भारत में इन दिनों राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर घमासान मचा है। विपक्ष को इसमें सरकार का इरादा सही नहीं लगता। इसे लेकर दो वर्गों में देश विभाजित हो गया है। एक जो समर्थन में है, उसे भाजपा समर्थक माना जा रहा है तो दूसरे वर्ग को विपक्षी खेमे का। इसका सर्वाधिक विरोध गैर भाजपाशासित राज्यों में हो रहा है। बिहार में हालांकि जेडीयू के साथ भाजपा सरकार में है, लेकिन बिहार में भी इसकगा विरोध लहो रहा है।
हाल ही में जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने इसके खिलाफ आवाज उठायी। बाद में जेडीयू के भीतर ही प्रशांत के बयान को लेकर हंगामा मच गया। बाद में नीतीश कुमार से प्रशांत ने मुलाकात की और बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से उनकी जो बात हुई है, उसमें बिहार में एनआरसी लागू न करने की नीतीश कुमार ने सहमति दी है। अभी तक नीतीश ने प्रशांत के बयान का खंडन नहीं किया है। इससे माना जा सकता है कि नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर की सलाह पर कोई एतराज नहीं है।
पश्चिम बंगाल तो पहले से ही इसके विरोध में है। दरअसल उन राज्यों में इसे लेकर सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है, जहां घुसपैठ अधिक है। प्रयोग के तौर पर असम में एनआरसी के लिए सर्वे कराया गया तो घुसपैठियों की पहचान हुई। लेकिन इस काम में सरकार को करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े। बंगाल भी घुसपैठ की समस्या से गंभीर रूप से प्रभावित है, लेकिन सत्ता में जो दल रहे, उन्होंने ऐसे घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया। यही वजह है कि बंगाल की राज्य सरकार भी एनआरसी के पक्ष में नहीं है।
दूसरी ओर बांग्लादेश ने कहा है कि अगर भारत में कोई बांग्लादेश घुसपैठिया है तो उसे वह अपने देश में वापस ले लेगा। उसके ऐसा कहने का तार्किक कारण भी है। खुद बांग्लादेश नें नागरिकता रजिस्टर बना रखा है। ऐसे में भारत की पहल के विरोध का उसे नैतिक हक भी नहीं है।
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वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने इस मुद्दे पर अपने फेसबुक वाल पर एक टिप्पणी पोस्ट की है। उन्होंने लिखा है कि जिस देश में एक सांसद के इधर से उधर हो जाने पर केंद्र सरकार गिर जाती है, वहां एक-एक वाजिब वोट की कीमत समझनी चाहिए। वह लिखते हैः सन 1999 में अटल सरकार एक वोट से गिर गई थी। वहां अब कई लोक सभा चुनाव क्षेत्रों की हालत ऐसी बना दी गई है, जहां का चुनाव परिणाम बांग्लादेशी घुसपैठिए तय करते हैं। ऐसा ही रहा तो ऐसे चुनाव क्षेत्रों की संख्या बढ़ सकती है।
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इसके बावजूद हारा हुआ प्रतिपक्ष राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनने नहीं दे रहा है। और, भारी बहुमत से चुनी हुई सरकार बेबस नजर आ रही है। नागरिक रजिस्टर बांग्लादेश में भी है और पाकिस्तान में भी। पर यहां इसलिए रजिस्टर नहीं होगा, क्योंकि इस देश के साथ कुछ लोगों को अभी कुछ खास सलूक करना है। उनके अनुसार यह देश नहीं, धर्मशाला है। इस देश का भगवान ही मालिक है।
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