- नवीन शर्मा
पान सिंह तोमर फिल्म कई मायनों में देखने योग्य है। सबसे पहली बात तो यह एक सच्ची घटना पर आधारित है। उसके बाद इस फिल्म के नायक की त्रासदी सचमुच दिल को दहला देती हैं। कैसे एक अव्वल खिलाड़ी और सैनिक परिस्थितियों के दवाब में डाकू बन जाता है। इसमें हमारी शासन व्यवस्था की खामियों को बहुत ही बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है।
कहानी का प्लाट तो काफी रोचक है ही, इसके साथ ही इसका प्रस्तुतीकरण भी दमदार है। फिल्म की कास्टिंग बहुत ही समझदारी से की गई है। सारे पात्र एकदम जीवंत लगते हैं। कहीं से भी कोई पात्र बनावटी नहीं लगता है। इरफान का अभिनय तो लाजवाब है ही, अन्य पात्रों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है। पटकथा भी अच्छी लिखी गई है। डायलॉग तो फिल्म की जान हैं। इस कहानी की पृष्ठभूमि चंबल का इलाका है। यह मप्र, राजस्थान और यूपी का बाडर्र है। यहां ब्रज भाषा बोली जाती है।
मुरैना व भिंड में जो बीहड़ का इलाका है, उसका भी फिल्मांकन वास्तिवक लगता है। फिल्म में जबरदस्ती गीत नहीं ठूंसे गए हैं। यह निर्देशक की समझदारी है कि उसने एक अच्छी फिल्म को बेमतलब के मसाले डालने से परहेज करने का साहस दिखाया। धुलिया का निर्देशन काफी कसा हुआ है। कहीं से नहीं लगता कि यह किसी नए निर्देशक की फिल्म है।
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बैंडेट क्वीन और पान सिंह में एक अंतर महत्वपूर्ण है कि उसमें फूलन सामान्य महिला के बदले की दास्तान है। पान सिंह में एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी की अनदेखी और परिस्थियों के कारण उसके डाकू बनने की दास्तान हैं। धुलिया ने बहुत ही रोचक अंदाज में कहानी कही है। अगर आप बेहतर फिल्म के शौकीन हैं, तो जरूर देखें।
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