पटना। बिहार में दारोगा नियुक्ति प्रक्रिया में हुई अनियमितता को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए पटना हाईकोर्ट ने बिहार पुलिस अवर सेवा भर्ती आयोग के मुख्य परीक्षा के परिणाम को निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय की एकल पीठ ने फैसला सुनाते हुए परीक्षा परिणाम निकालने की प्रक्रिया को अपारदर्शी एंव कानूनी तौर पर अवैध करार दिया है। साथ ही पूरे बहाली प्रक्रिया को मुख्य परीक्षा के स्तर से नियमों का पालन करते हुए पारदर्शी बनाने तथा आपत्तियों को दूर कर फिर से परिणाम घोषित करने करने का आदेश देते हुए महत्वपूर्ण निर्देश भी दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में परीक्षा परिणाम घोषित करने से पहले आवश्यक नियमों का पालन करने का निर्देश बिहार पुलिस अवर सेवा को भर्ती देते हुए कहा है कि भर्ती आयोग परीक्षार्थियों की आपत्तियों को अपनी वेबसाइट पर आमंत्रित करेगा। आपत्तियों के निवारण के लिए एक कमेटी गठित होगी। आरक्षण के नियमों तथा महिला परीक्षार्थियों को सुप्रीम कोर्ट के तय मापदंड के अनुसार विर्धारित लाभ सुनिश्चित किया जाएगा। इस प्रक्रिया को पूरी करने के बाद ही आयोग मुख्य परीक्षा का परिणाम फिर से घोषित करेगा।
गौरतलब है कि 1717 पदों के लिए भर्ती आयोग की ओर से 22 जुलाई 2018 को परीक्षा ली गई थी। 5 अगस्त 2018 को मुख्य लिखित परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया। इनमें 10161 अभ्यार्थी सफल घोषित हुए, लेकिन परिणाम घोषित करने की प्रक्रिया से असंतुष्ट सैंकडों अभ्यार्थियों ने परीक्षा में अनियमितता का आरोप लगाते हुए रिट याचिका दायर की थी। 5 सितम्बर 2018 को हाईकोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया के अंतिम रिजल्ट पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता चक्रपाणि ने कोर्ट को अवगत करया था कि परिणाम घोषित करने में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया। प्रारंभिक परीक्षा में पिछडी जाति की एक भी महिला उर्तीण नहीं हुई थी, लेकिन जब मुख्य परिक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो उसमें 291 पिछडी जाति की महिलाओं के नाम थे। कानून को पूरी तरह ताख पर रख कर दारोगा बहाली प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा था। दारोगा बहाली के परीक्षा परिणाम पर मांगी गई आरटीआई पर सरकार की ओर से गोलमटोल जवाब ही मिला था। सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष का दावा था कि दरोगा नियुक्ति का परिणाम भर्ती के आलोक में दिए गये विज्ञापन के अनुसार ही है। दारोगा बहाली में आरक्षण का लाभ कानून के तहत ही दिया है।
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