पटना। मंडल आयोग की सिफारिशें जिनके सौजन्य से लागू हुईं, वे थे बीपी मंडल। उनकी जयंती पर अकेले उनके परिजनों ने ही उनकी प्रतिमा पर पुष्पार्पण कर श्रद्धांजलि दी। सरकारी अमला तो पहुंचा ही नहीं, मंडल कमीशन की सिफारिशों को लेकर राजनीति करने वालों ने भी उनकी उपेक्षा की। लाभार्थियों ने भी उन्हें उस तरीके से याद नहीं किया, जिसके वे हकदार थे।
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वरिष्ठ पत्रकार विपेंद्र कुमार ने फेसबुक वाल पर उन्हें याद किया है। उन्होंने लिखा है- बीपी मंडल का जन्मदिन था कल (शनिवार को)। मंडल मसीहा यानी पिछड़ा वर्ग आयोग के प्रमुख के रूप में उनकी याद सदैव बनी रहेगी। लेकिन बिहार की राजनीति में उनकी सक्रियता पुरानी रही थी, जिसे अब याद नहीं किया जाता।
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1967 चुनाव में लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया। कई राज्यों में पहली बार एक साथ कांग्रेस की सरकार उखड़ गई। बिहार में भी संविद सरकार यानी संयुक्त विधायक दल की सरकार 5 मार्च 1967 को बनी। इस सरकार की अनोखी खासियत थी कि सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट और जनसंघ (भाजपा का पूराना नाम) साथ-साथ थे।
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इन सभी पार्टी के मंत्री थे। लेकिन 10 माह के अंदर ही तोड़फोड़ शुरू हो गयी। बीपी मंडल ने मुख्यमंत्री बनने के लिए पहले तीन दिन के लिए सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री बनवाया। वे 28 जनवरी 1968 को मुख्यमंत्री बने और फिर एक फरवरी को बीपी मंडल खुद मुख्यमंत्री बन गए। उस वक्त वे लोकसभा के सदस्य थे। लेकिन ज्यादा दिन उनकी कुर्सी नहीं रही।
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एक महीने में कांग्रेसी भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बने, फिर राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और 1969 में मध्यावधि चुनाव हुआ। 1971 में इंदिरा गांधी ताकत के साथ उभरी तो फिर 72 में बिहार में चुनाव करा दिया। 1967 में पहली संविद सरकार को गिराने के बाद का यही वह दौर था जिसे “आया राम, गया राम” वाली सरकार का दौर कहा गया। 1967, 69, 72 तीन चुनाव 12 मुख्यमंत्री।
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