- प्रशांत कुमार
डीजीपी साहब, क्या अपराध नियंत्रण का मतलब दहशत फैलाना होता है। शुक्रवार की रात मुझे पटना की सड़कों पर घूमते हुए ऐसा ही एहसास हुआ। बहुत तेज भूख लगी थी। रात 11.15 बजे ऑफिस की गाड़ी से चालक सूरज के साथ निकला। सारी दुकानें बंद। बोरिंग रोड चौराहे पर कुछ आइसक्रीम के ठेले लगे थे। हड़ताली मोड़ पर पहुंचा। एग रोल बनाने का ठेला लगा था। बगल में एक दुकान थी, जिसमें कोल्ड ड्रिंक, पानी, सिगरेट, गुटखा, मिस्टी दही आदि बिक रहे थे। पाटलिपुत्र इंडस्ट्रियल एरिया से वहां तक पहुंचने में तीन जगह गाड़ी रोकी गई। हर जगह रोकने पर सिपाही ने केवल मुंह सूंघा, कहां से आ रहे हैं, कहां जा रहे हैं, इतना पूछा और चलता कर दिया।
हड़ताली मोड़ पर सड़क के किनारे एग रोल चबा रहा था, तभी कोतवाली थाने की गश्ती पुलिस पहुंची। उस पर दारोगा जी बैठे थे, जिनके नेम प्लेट का आखिरी शब्द ‘सफी’ था। इतना तिलमिलाए थे, मानो जीप से ही कूद जाएंगे। मां-बहन की गाली देते नीचे उतरे, कहा- साला, अब तक खिला रहा है। बंद करो। उतनी ही गाली देते हुए बगल वाली दुकान भी बंद कराई। ग्राहकों को भी भगाया। कंधे पर लदी राइफल संभालने के लिए पुलिस जीप के सहारे खड़े एक बुजुर्ग गृहरक्षक से मैंने पूछा- सर, कुछ हो गया क्या? ये घटिया एग रोल बनाता है? तो उन्होंने कहा- आज टाइट गश्ती है। ये सब को बंद करने का आदेश है। रात में ये लोग लूटता है, बदनाम हम लोग होते हैं। फिर उन्होंने मुझे भी चेताया- घर में खाना नहीं मिलता, वहीं जा के खाओ। भागो यहां से। गाड़ी में घुसने के बाद मैंने चुपके से तस्वीर ली।
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बड़ी देर तक सोचने के बाद भी एक सवाल का जवाब नहीं मिला। रात में सभी लोग दुबक कर सोएं। सारी दुकानों पर ताले लगे हों। हम अपनी सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे और अलार्म लगाएं, ताकि हम लुट ना जाएं तो पुलिस का काम केवल हथियार लेकर जीप में सरकारी ईंधन को फूंकना है क्या? लॉ एंड ऑर्डर और क्राइम कंट्रोल तो तब कहा जाए, जब व्यवसायी निर्भीक होकर कारोबार करें और हम जैसे प्राइवेट नौकरी करने वाले निडर होकर नाइट शिफ्ट ड्यूटी के बाद घर सकुशल लौट सकें। आम जनता और कारोबारियों में पुलिस का दहशत फैलाने से अपराध नियंत्रण हो सकता है क्या? ये समझ से परे है।
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मैं कई शहरों में रहा हूँ। घूमा हूँ। दूसरे शहरों में कई ऐसी जगह होती हैं, जहां रातभर दुकानें खुली रहती हैं। खाना, पीना, दवा आदि चीजें 24 घंटे मिलती हैं। अब जब पटना को स्मार्ट सिटी बनाने की कोशिश जारी है तो फिर ये दहशतगर्दी क्यों? उन निरीह, निर्दोष लोगों पर खौफ कायम करना, कहां की पुलिसिंग है।
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मेरा मानना है, आम आदमी से जिस दिन पुलिस के संवाद करने का तरीका सुधर जाएगा, अपराध तभी नियंत्रण में आयेगा। आज घटना होने पर पुलिस को आम आदमी का सहयोग नहीं मिलता, क्योंकि सूचना देने वाले को इस कदर मानसिक और शारीरिक परेशानी झेलनी पड़ती है कि वो दोबारा कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं होता। और यकीन मानिए, अपराध का ग्राफ बढ़ने का मुख्य कारण सूचना तंत्र की कमी और कमजोरी है।
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दारोगा, डीएसपी, एसपी जब सब ठसक में रहेंगे कि हम आम इंसान से अलग हैं, इसलिए हम जनता के बीच नहीं जाएंगे, वो मेरे पास आये तो पास तो वही आएगा, जो माल खायेगा और आपको खिलायेगा। बाकी क्यों कोई पुलिस वाले से दोस्ती या दुश्मनी लेने जाए।
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