लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की बन रही संभावना

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नयी दिल्ली। अगले लोकसभा चुनाव में कई स्थानों पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन रहे हैं। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के उत्तर प्रदेश में गठबंधन के बाद तो यह साफ ही हो गया है कि वहां तितरफा चुनाव होगा। बिहार भी उसी राह पर बढ़ रहा है। महागठबंधन में आधा दर्जन से ज्यादा दलों की मौजूदगी और कांग्रेस व राजद की अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद से भी यह संकेत मिलने लगा है कि तीन ध्रुवों पर बिहार में भी चुनाव हो सकता है।

राजद-कांग्रेस बिहार के महागठबंधन की अगुआ पार्टियां हैं। सर्वाधिक पेंच उन्हीं दो दलों की सीटों को लेकर है। कांग्रेस अपनी बदली मजबूत स्थिति का हवाला देकर राजद के बराबर सीटें मांग रही है, जबकि राजद अपने जनाधार का हवाला देकर सर्वाधिक सीटों पर खुद लड़ना चाहता है और कांग्रेस को बमुश्किल 10 सीटें देना चाहता है।

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वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी ने अगले लोकसभा चुनाव को लेकर अब तक के हालात के मद्देनजर अनुमान व्यक्त किया है कि दोनों राज्यों में तितरफा चुनाव होने की संभावना प्रबल है। उन्होंने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में त्रिकोणीय मुकाबले के प्रबल आसार है। भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बीच कांग्रेस के साथ छोटे दल भी हाथ आजमाएंगे।

बिहार में भाजपा-जदयू के खिलाफ मुकाबले में राष्ट्रीय जनता दल-बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी मैंगे। कांग्रेस चूंकि ज्यादा सीट चाहती है तो उसकी अगुआई में तीसरे मोर्चे के आसार बन रहे हैंय़ तीसरा मोरचा बना तो इसमें एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में आये रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा, जनाधिकार पार्टी के पप्पू यादव, शरद यादव और अरुणण कुमार अलग गठबंधन बना कर मैदान में उतर सकते हैं। महागठबंधन में दो सीटें मिल गयीं तो राष्ट्रीय जनता दल के साथ भी जा सकते हैं शरद यादव।

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मायावती के उभार और यूपी के गठबंधन में अपनी उपेक्षा से नाराज कांग्रेस बिहार में उन्हें तनिक भी तरजीह देने के मूड में नहीं है। हालांकि राजद को मायावती से मोह है। तेजस्वी यादव ने यूपी में गठबंधन बनने के तुरंत बाद मायावती और अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। बताया जाता है कि मायावती ने तेजस्वी से बिहार में भी एक-दो सीटों पर लड़ने की इच्छा जतायी थी। दूसरी ओर मायावती को बिहार के महागठबंधन में शामिल करने के खिलाफ कांग्रेस की लामबंदी शुरू हो गयी है। बसपा सुप्रीमो की काट के लिए कांग्रेसी खेमे की ओर से मीरा कुमार का नाम आगे किया जा सकता है। यानी दलित की बेटी बनाम दलित की बेटी की जंग की तैयारी है।

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ममता की रैली में कांग्रेस की ओर से राहुल की बजाय खड़गे और बसपा की ओर से माया की बजाय सतीश चंद्र मिश्र का जाना विपक्षी एकता के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है। पहली ही नजर में विपक्षी एकता की हवा निकलती दिख रही है। ममता के साथ जाने में बंगाल कांग्रेस को हिचक है। इसके संकेत पहले भी स्थानीय नेतृत्व देता रहा है। अलबत्ता के चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक और जगन रेड्डी की भागीदारी वाले संघीय मोर्चा की तैयारी तेज हो सकती है। यानी दक्षिण और पूरब में भी त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन रहे हैं।

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तमिलनाडु में एक ग्रुप अन्नाद्रमुक का तो दूसरा द्रमुक का और तीसरा छोटे दलों का बन सकता है। त्रिकोणीय मुकाबले में यहां भाजपा और कांग्रेस को भी दोनों बड़े दलों में से किसी एक का साथ जरूरी होगा। अब तक के संकेतों के मुताबिक कांग्रेस द्रमुक के साथ जाती दिख रही है। केरल में भी त्रिकोणीय मुकाबला होने की प्रबल संभावना है। एक तरफ कांग्रेस की अगुआई वाला यूडीएफ होगा तो दूसरी तरफ वाममोर्चा। तीसरा मोर्चा भाजपा का होगा। यहां भाजपा इस बार चौंका सकती है।

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