- शिखर चंद जैन
हमारे समाज में नैतिकता का कैसा ह्रास हुआ है, यह देखना हो तो किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लीजिए। रोज इंसानियत और रिश्तों को शर्मसार करनेवाली ऐसी खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं, जिनकी कल्पना मात्र से आपके पैरों तले की धरती फट जाए। कहीं 8 माह की बच्ची का बलात्कार हो रहा है, तो कहीं खुद जन्मदाता पिता अपनी बेटी के साथ Cऐसा कुकर्म कर रहा है। बेटा बीमार बूढ़ी मां को छत से धकेल कर नीचे गिरा देता है, छोटे-छोटे बच्चे और टीनेजर्स खेलने-कूदने और मस्ती की उम्र में एक दूसरे की गला रेत कर हत्या कर देते हैं। ये घटनाएं इतनी आम होती जा रही हैं कि यहां इनके घटने के स्थान और समय का जिक्र करना ही बेमानी है। वजह यह है कि देश के लगभग हर राज्य में, हर शहर में ऐसी घटनाएं घटने लगी हैं। समाज कहां जा रहा है?
क्या कभी आपने सोचा है कि हमारे समाज में इतनी नैतिक और भावनात्मक गिरावट कैसे आ गई है? किसी हरे-भरे पेड़ जैसे लहलहाते रिश्ते और इंसानियत सूखे ठूंठ जैसे बेजान और कठोर कैसे होते जा रहे हैं? दरअसल यह समानुभूति यानी इम्पैथी की कमी के कारण हो रहा है। हम सब कुछ अपने ही नजरिए से देखने की बुरी आदत पाल बैठे हैं। दूसरे के स्थान पर खुद को रख कर सोचने की आदत गुम-सी होने लगी है और सारी समस्या की जड़ हमारा यही सेल्फ सेंटर्ड रवैया है- खुद को आनंद मिलना चाहिए, दुनिया जाए भाड़ में। आजादी के सुख के लिए मां को धकियाने वाले बेटा, छुट्टियों के आनंद के लिए सहपाठी की हत्या करने वाले बच्चे, संपत्ति का सुख पाने के लिए बाप को मारने वाले बेटे और क्षणिक यौन सुख के लिए बेटी, पड़ोसी या रिश्तेदार की नन्हीं बच्ची के साथ कुकर्म करने वाला पिता/चाचा, ये सब के सब इसी सोच के कारण प्राचीन काल के दैत्यों जैसा व्यवहार व आचरण करते हैं।
क्या है समानुभूति
अचानक समानुभूति यानी इम्पैथी शब्द शिक्षाविदों, मनोविज्ञानियों, राजनीतिज्ञों, समाजशास्त्रियों व व्यवहार विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। अक्सर लोग इसका गलत अर्थ लगा लेते हैं और इसे सहानुभूति समझ लेते हैं। दरअसल समानुभूति में दयालुता या दया जैसा भाव नहीं, बल्कि दूसरों की फीलिंग्स समझने और आपके किसी काम या व्यवहार से उन्हें कैसा महसूस होगा या फिर कोई आपके साथ भी वैसा ही व्यवहार करे, तो आपको कैसा फील होगा, यह अनुभूति जरूरी है।
रोमन क्रेजनेरिक ने भी अपनी किताब इम्पैथी : अ हैण्डबुक फॉर रिवोल्यूशन’ में इस बात पर जोर दिया है कि आज की तारीख में लोगों में समानुभूति की भावना होनी कितनी जरूरी है। बीते एक दशक में न्यूरोवैज्ञानिकों ने पाया है कि भले ही इंसान एक स्वार्थी और आत्मकेंद्रित जीव है, लेकिन उसमें परोपकार सहानुभूति और समानुभूति के भाव आसानी से जागृत किए जा सकते हैं। इनके अनुसार 98 फीसदी लोगों के दिमाग में ‘इम्पैथी सर्किट’ होता है। बस इसे सही माहौल से जागृत करने की जरूरत है।
इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट फ्रांस डी वाल ने कहा है कि हम सब सामाजिक जीव है, जो एक दूसरे की परवाह करने के लिए प्रोगाम्ड हैं। हमारे पूर्वज भी ऐसा करते आए हैं। मनोविज्ञानियों ने भी अपने शोध में पाया है कि हममें शुरू-शुरू में समानुभूति की स्ट्रॉन्ग भावनाएं रहती हैं। इन्हें आगे चलकर हम कितना मेंटेन कर पाते हैं, यह हमारे माहौल और खुद हम पर भी निर्भर करता है। इसे हमें दूसरों में ऑब्जर्व भी करना चाहिए और फिर उसे खुद भी फॉलो करना चाहिए। इससे हमारे बच्चे भी वही सीखेंगे और यह सिलसिला आगे बढ़ता जाएगा।
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कैसे जागृत हो समानुभूति
- समानुभूति अर्जित करने के बहुत तरीके हैं। ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक समारोहों में शामिल हों, धार्मिक कार्यक्रमों में जाएं, सोशल सर्किल बढ़ाएं। इससे आपके मन में लोगों के प्रतिप्रेम व स्नेह तो उत्पन्न होगा ही, आप ज्यादा से ज्यादा लोगों की भावनाएं समझ पाने में भी सक्षम होंगे।
- समानुभूति के लिए आपको एक एक्टर की तरह बिहेव करना पड़ेगा। जैसे कोई अभिनेता अपने किरदार में डूब जाता है और उसी की तरह सोचने और एक्ट करने लगता है, उसी प्रकार आपको उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर विचार करना होगा, जिसके साथ आप बिहेव कर रहे हैं।
- नॉन वायलेंट कम्यूनिकेशन के संस्थापक और मनोविज्ञानी मार्शल रोसेनबर्ग कहते हैं- ‘किसी भी व्यक्ति की मनोदशा उसकी मानसिक स्थिति और जरूरत को समझने के लिए आपको उसकी बातें सुननी चाहिए। चाहे वह आपका अधीनस्थ कर्मचारी हो, मित्र हो, जीवनसाथी हो, संतान हो या फिर पेरेंट्स हैं। पति-पत्नी में ज्यादातर झगड़े, इसी बात पर होते हैं कि दोनों को लगता है कि वे उनकी परवाह नहीं करते और उनके मन की बात समझने की कोशिश नहीं करते। बस, इसीलिए अलगाव और तलाक के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं।
- अगर आप सचमुच अपने संबंधों की परवाह करते हैं और जीवनसाथी या फिर किसी भी व्यक्ति के साथ रिश्तों को सरस रखना चाहते हैं तो खुद में समानुभूति का गुण विकसित करें।
- कभी मौका मिले तो बैठ कर लोगों से उनके दिल की बात सुनें। यकीन मानिए, जब आप ऐसा करेंगे, तो वह भी आपको इतना ही महत्व देंगे। एक नेटिव अमेरिकन कहावत है, ‘दूसरे की बुराई करने से पहले उसके जूते पहन कर एक मील पैदल चलो।’ जैसे हमारे यहां है, ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।’
- आपने लोककथाओं व पौराणिक कथाओं में पढ़ा होगा कि कैसे दूसरों का दुख-दर्द जानने के लिए या उनके मन की भावनाओं को समझने के लिए राजा-महाराजा या अच्छे लोग देश बदल कर गरीबों व दुखियारे लोगों के बीच रहते थे। इसके पीछे समानुभूति उत्पन्न करना ही उद्देश्य था।
- समानुभूति रखने वाले लोगों में एक खास गुण होता है। वे अजनबी लोगों से भी बातचीत करने और उनके बारे में जानकारी लेने में दिलचस्पी रखते हैं। ये बस या ट्रेन में अपने बगल में बैठे व्यक्ति से भी आसानी से घुलमिल जाते हैं। हां, अगर आप भी ऐसी कोशिश करते हैं तो बस एक मूल बात का ध्यान रखें, ‘उत्सुक बनें लेकिन उनके एग्जामिनर नहीं।
- किताबें पढ़ने और फिल्में देखने की आदत भी आपकी कल्पनाशक्ति को बढ़ाती हैं और आपको दूसरे की फीलिंग्स का सही सही अंदाजा लगाना सिखाती है। अगर आपको इम्पैथी पर ढेर सारी सामग्री पढ़नी है और इस कला में पारंगत होना है तो आप दुनिया की पहली ऑनलाइन इम्पैथी लाइब्रेरी www.empathylibrary.com पर उपन्यास, नॉन फिक्शन, फीचर फिल्म, बच्चों की किताबें और वीडियो देख सकते हैं।
फायदे समानुभूति के
- हैप्पीनेस गुरू मार्टिन सेलिगमैन कहते हैं, ‘ऐसा करना न सिर्फ आपके अकेलेपन या उदासी के अहसास को दूर करता है, बल्कि आपको संतुष्टि औऱ खुशी भी देता है। आप हर हफ्ते कम से कम एक अजनबी से बात करने की आदत जरूर डालें।
- आप बिना कहे लोगों की बात और उनकी भावनाएं समझ सकते हैं। इससे आप एक अच्छे बिजनेसमैन और सेल्समैन भी बन सकते हैं।
- अपने इर्द गिर्द के लोगों को आसानी से मोटीवेट कर सकते हैं। लोगों को अपनी बात ज्यादा आसानी से बता सकते हैं।
- अपने ग्राहकों की जरूरत और उनकी मन की बात समझ सकते हैं।
- आपके शब्दों और व्यवहार का लोगों पर क्या असर पड़ रहा है यह आसानी से जान सकते हैं।
- कोई आपके प्रति दुराग्रह या शत्रुभाव रखता है, तो सावधान रह सकते हैं।
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