पटना। बिहार में उच्च शिक्षा जगत की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए सुधार के प्रयास तेज कर दिये गये हैं। यह कहना है GOVERNOR लालजी टंडन का। उच्च शिक्षा में गुणात्मक विकास करते हुए इसे शोधपरक और रोजगारोन्मुखी बनाने के लिए हर तरह के आधुनिक और समकालीन प्रयास किये जा रहे हैं। उक्त बातें GOVERNOR श्री टंडन ने केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं राजभवन के संयुक्त तत्वावधान में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय द्वारा संयोजित ‘उच्च शिक्षा में डिजिटल पहल’’ विषयक दो दिवसीय (11-12 अप्रैल) कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कहीं।
राज्यपाल ने कहा कि उच्च शिक्षा के विकास के बगैर किसी प्रदेश या राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती। ज्ञान-विज्ञान की आधुनिक प्रगति से जुड़ने के साथ ही हमें अपनी जड़ों से भी जुड़ना होगा। जड़ों से जुड़ने का मतलब अपनी समृद्ध परम्पराओं और विरासतों से जुड़ना है। उन्होंने कहा कि भारतीय वैदिक वांगमय में भी वैज्ञानिकता की पर्याप्त पुट है। उन्होंने कहा कि सुश्रुत को ‘सर्जरी’ का जनक’ माना जाता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के प्रकांड विद्वान थे तथा आर्यभट्ट गणित के उद्भट विद्वान थे।
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राज्यपाल ने कहा कि प्राचीन भारत की ज्ञान-समृद्धि मूलतः बिहार की दार्शनिक एवं सांस्कृतिक वैभव पर आधारित है। उन्होंने कहा कि बिहार के नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय आदि पूरे विश्व में उच्च शिक्षा के केन्द्र के रूप में विख्यात रहे हैं। राज्यपाल ने कहा कि हमें पुनः अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल करनी है।
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राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि ‘सी॰बी॰सी॰एस॰’, ‘यू॰एम॰आई॰एस॰’, नैक के बाद हम डिजिटलीकरण की ओर तेजी से कदम बढ़ायेंगे। उन्होंने कहा कि डिजिटलीकरण से पूरे विश्व की ज्ञान-संपदा के सम्पर्क में हमारे शिक्षक एवं छात्र आएँगे तथा कार्यों में तत्परता, तेजी और पारदर्शिता बढ़ेगी। राज्यपाल ने उपनिषदीय सूक्ति को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘‘यह समय ‘उठने, जगने, ज्ञान प्राप्त करने तथा प्राप्त ज्ञान से सबको लाभान्वित करने का है।’’ उन्होंने कहा कि हमें निरंतर आगे बढ़ते रहने- ‘चरैवैति चरैवैति’ की शिक्षा अपनी संस्कृति से मिलती है। श्री टंडन ने कहा कि हमें अपनी ज्ञान-संपदा और विरासतों का भरपूर उपयोग करना चाहिए तथा दुनियाँ के अन्य देशों की शिक्षा-व्यवस्था और आर्थिक समृद्धि से भी बराबर प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि हमारा समग्र विकास हो सके। राज्यपाल ने कार्यक्रम में मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘डिजिटल इनिसिएटिव्स इन हायर एजुकेशन’ का भी विमोचन किया।
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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्य के विकास आयुक्त श्री सुभाष शर्मा ने कहा कि शिक्षा सिर्फ परीक्षा और क्लासरूम तक सीमित रहनेवाली योग्यता नहीं है। उन्होंने कहा कि विद्या ‘साविद्या या विमुक्तये’ का हमारा दर्शन आज भी प्रासंगिक है। शिक्षा हमारे ज्ञान-विस्तार और व्यक्तित्व-विकास की कुंजी है। उन्होंने कहा कि शोध शिक्षा का प्राण-तत्व है। हम सिर्फ सूचनाओं पर ही केन्द्रित नहीं रह सकते। सूचना-संग्रह से कहीं आगे जाकर, बैंकिंग अवधारणाओं से ऊपर उठकर हमें शिक्षा को बहुआयामी बनाना होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा का डिजिटलीकरण अभिवंचित और सुदूर बस्तियों तक ज्ञान को पहुँचाने का जरिया बन सकता है।
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कार्यक्रम में बतौर प्रमुख वक्ता IIT, मद्रास से आये जिजिटल दुनिया के विशेषज्ञ प्रो॰ मंगला सुन्दर ने कहा कि ‘डिजिटलीकरण’ से संबंधित कार्यक्रम छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए भी काफी उपयोगी एवं ज्ञानवर्द्धक हैं। उन्होंने विस्तार से ‘स्वयं’, ‘स्वयंप्रभा’, ‘एन॰डी॰एल॰आई॰’, स्पोकेन ट्यूटोरियल एण्ड फोस्सी’, वर्चुअल लैब,’ ‘अर्पित’, ‘नैड’, ‘ए॰आई॰एस॰एस॰ई॰’, ‘एन॰आई॰आर॰एफ॰’ आदि के बारे में कार्यशाला के प्रतिभागियों को बताते हुए इनसे लाभान्वित होने का अनुरोध किया।
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