RJD में मचे घमासान को अब संभालेंगी राबड़ी देवी

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राबड़ी देवी
राबड़ी देवी

पटना। RJD में मचे घमासान को अब संभालेंगी राबड़ी देवी। लालू प्रसाद की गैरहाजिरी में राजद इन दिनों बिना दंड की फौज बन गया है। हर कोई मनमानी करने लगा है। लोकसभा में पराजय के बाद शीर्ष नेताओं की बोलती बंद है तो छोटे स्तर के नेता बगावती तेवर अपनाये हुए हैं। कल राजद के एक विधायक ने तो तेजस्वी यादव से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने तक की मांग कर दी।

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बताया जाता है कि राबड़ी देवी अब खुद पार्टी की कमान अपने हाथ में भले न लें, पर लालू प्रसाद की तरह अभिभावक की भूमिका में वह उतरेंगी। लोकसभा चुनाव में हार के कारणों की समीक्षा करेंगी। राजद के सामने एक साथ चार चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। अव्वल तो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद अस्पताल में तमाम तरह की बीमारियों के कारण जिंदगी से जूझ रहे हैं और बड़े बेटे तेज प्रताप ने परिवार में बगावती तेवर अपना लिया है। दूसरा कारण लोकसभा चुनाव में राजद के नेतृत्व में बने महागठबंधन की बुरी तरह पराजय है। यानी राजद का एम-वाई (मुसलिम-यादव) समीकरण सेंधमारी का शिकार हुआ नजर आता है। तीसरा बड़ा कारण पराजय के बाद राजद में नेतृत्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं। चौथा कारण अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को फिर से खड़ा करना है।

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राजद पर लालू परिवार का कब्जा है। दबी जुबान ही राजद में यह बात उठने लगी है कि परिवार की चिंता में पार्टी दुबली होती जा रही है। पाटलीपुत्रा सीट से भाई बीरेंद्र को दरकिनार कर मीसा भारती को टिकट दिये जाने से भीतर ही भीतर बीरेंद्र के समर्थक नाराज हो गये। लालू के दुर्दिन में साथ देने वाले चेहरों में भाई बीरेंद्र का नाम आता है। कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें लोकसभा में टिकट देने का लालू प्रसाद ने वादा भी किया था और वे उसी तैयारी में जुट गये थे।

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अब्दुल बारी सिद्दीकी, जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे पुराने और दिग्गज साथियों की पार्टी में उपेक्षा की जा रही है। हालांकि रघुवंश और जगदानंद को लोकसभा का टिकट देकर राजद ने उनकी उपेक्षा की शिकायत दूर करने की कोशिश की, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसद आरक्षण के सवाल पर राजद के विरोध ने उनकी लुटिया डुबोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

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अब देखना दिलचस्प होगा कि राबड़ी देवी राजद की हताशा, गुटबाजी को दूर करने में कितना कामयाब हो पाती हैं। विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को कितना तैयार कर पाती हैं। वैसे राजनीति में जीत-हार का कोई शाश्वत स्थान नहीं होता, लेकिन हार के बाद जीत के लिए जितनी मशक्कत करनी पड़ती है, उतनी मेहनत राबड़ी देवी कर पाती हैं या नहीं।

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