पटना/ नयी दिल्ली। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नेता ने खीर बनाने की बात कही थी, लेकिन अंततः एनडीए में ही खिचड़ी पकाते नजर आ रहे हैं। सस्पेंस के बीच मंगलवार को दिन के ढाई बजे केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने नयी दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस की। जिस अंदाज में प्रेस कांफ्रेंस बुलाया गया, उससे वहां पहंचे पत्रकारों को किसी बड़ी ब्रेकिंग स्टोरी की उम्मीद थी। लेकिन खोदा पहाड़, निकली चुहिया की मनःस्थिति के साथ उन्हें लौटना पड़ा।
हाल के दिनों में जिस तरह से उपेंद्र कुशवाहा बोली-बतकही हो रही थी, उससे पत्रकारों को उम्मीद थी कि एनडीए से रिश्ता तोड़ने की वह घोषणा कर सकते हैं। इस आशंका को इससे भी बल मिला कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा बातचीत के लिए उन्हें बुलाये जाने की खबर थी। जिस दिन अमित शाह और नीतीश कुमार सीटों के बंटवारे का 50-50 का फार्मूला बता रहे थे, संयोगवश उसी वक्त उपेंद्र कुशवाहा अरवल के सर्किट हाउस में मुलाकात कर रहे थे। तभी से यह कयास लगने लगा था कि कुशवाहा का मन एनडीए के आचरण से ऊब चुका है। हालांकि उसके पहले भी उन्होंने सामाजिक समीकरण के हवाले से खीर बनाने का फार्मूला पेश कर राजनीतिक कयासबाजी की शुरुआत कर दी थी।
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मंगलवार के प्रेस कांफ्रेंस मूलतः उन्होंने मध्यप्रदेश में रालोसपा के चुनाव लड़ने और उसके उम्मीदवारों की सूची जारी करने के लिए की थी। एनडीए में उन्होंने पूरा भरोसा जताया। अमित शाह की जगह बिहार के भाजपा पदाधिकारी भूपेंद्र यादव से मुलाकात की जानकारी भी उन्होंने दी। इससे सब कुछ आल इज वेल के अंदाज में दिखा। लेकिन इसी दौरान उन्होंने मन की पीड़ा भी जाहिर कर दी। उन्होंने कहा कि बिहार में जब एनडीए की सरकार बनी तो उनकी पार्टी की कोई पूछ नहीं हुई। संभव है कि यह पीड़ा उन्होंने भूपेंद्र यादव के सामने भी बतायी हो।
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यानी उन्होंने नीतीश से अपने संबंधों के खटास को इशारों-इशारों में ही उजागर कर दिया। इस खटास को भुनाने के लिए महागठबंधन के दो दल तैयार बैठे हैं। कल ही कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झा ने उन्हें अपने दल में आने का न्योता दिया था। राष्ट्रीय जनता दल तो कई बार उनसे आग्रह कर चुका है।
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