PATNA : बिहार में अभी तक सिर्फ मुजफ्फरपुर शेल्टर होम ही चर्चा के केंद्र में था, पर CBI द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सौंपे हलफनामे के मुताबिक अब इनकी तादाद 17 हो गयी है। इन सभी केंद्रों में रहने वाली लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न और शारीरिक शोषण के मामले प्रकाश में आए हैं। सीबीई ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के साथ राज्य के सभी आश्रय स्थलों की जांच की थी। इनमें 17 में ये गड़बड़ियां पायी गयी हैं। सीबीआई ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा पेश किया।
सीबीआई ने जब बिहार के अन्य 17 शेल्टर होम का मुआयना किया तो जांच-पड़ताल में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जांच एजेंसी ने पाया कि इन होम में रहने वाली आश्रितों के साथ भी मुजफ्फरपुर होम की तरह ही दुराचार और शारीरिक प्रताड़ना हुई है। सीबीआई ने इस संबंध में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा पेश किया, उसके तथ्यों के मुताबिक बिहार के 25 जिलाधिकारी और 46 अन्य सरकारी अधिकारी इस मामले में लिप्त पाए गए हैं। सीबीआई ने उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।
इस बाबत सीबीआई ने बिहार के मुख्य सचिव को पत्र भेजा है। इसमें 52 ऐसे बाहरी व्यक्तियों का भी जिक्र है, जो निजी तौर पर या किसी एनजीओ के माध्यम से इस मामले में लिप्त पाए गए हैं। उनके रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सीबीआई ने अनुशंसा की है। सनद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर 2018 को मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के अलावा बिहार के दूसरे 16 ऐसे आश्रय गृहों की भी जांच के आदेश दिए थे।
बिहार में मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में बिहार पुलिस ने 12 मामले दर्ज किए थे। ऐसे सभी मामलों की सीबीआई ने दोबारा जांच कर मामले दर्ज किये। जांच के दौरान चार शेल्टर होम के संचालक सबूत के अभाव में बच गए, लेकिन इनमें सरकारी अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है। ऐसे अधिकारी इन होम का उचित निरीक्षण नहीं कर पाने के दोषी पाये गये हैं। ऐसे अफसरों पर सीबीआई ने विभाग के स्तर पर कार्रवाई की सिफारिश की है।
14 नवंबर 1917 को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) ने मुजफ्फरपुर शेल्टर होम का सोशल आडिट कर रिपोर्ट सौंपी थी। सोशल ऑडिट में कई तरह की गड़बड़ियों को टिस की टीम ने उजागर किया था। छह-सात महीने बाद 31 मई 2018 को इस मामले में केस रिकॉर्ड किया गया। 1 जून 2018 को मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के संचालक बृजेश ठाकुर को हिरासत में लिया गया। बिहार पुलिस ने 26 जून 2018 को मामला सीबीआई को सौंप दिया।
सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है कारगर कार्रवाई
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर फेसबुक पर अपनी टिप्पणी दी है। वह लिखते हैः जिन पर कार्रवाई होनी है, उनमें डी.एम. पद पर रहे 25 आई.ए.एस. अफसर भी शामिल हैं।
इतनी बड़ी संख्या में आई.ए.एस. अफसरों के खिलाफ सबक सिखाने लायक कार्रवाई कोई राज्य सरकार कर दे, यह असंभव-सा काम लगता है। अब तक के अनुभवों के आधार पर कह रहा हूं। हां, यदि सुप्रीम कोर्ट चाहे तो सरकार कार्रवाई के लिए विवश हो जाएगी।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार आदि के मामले में कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं तो मुख्यमंत्री भला क्या कार्रवाई करेंगे! प्रधानमंत्री जिस तरह ‘‘लेटरल बहालियां’’ कर रहे हैं, उसी तरह राज्यों में भी बहालियां होनी चाहिए।
उधर सांसद फंड अफसरों-नेताओं के भ्रष्टाचार का ‘रावणी अमृत कुंड’ बना हुआ है। अधिकतर आई.ए.एस. अफसर अपने सेवाकाल के प्रारंभिक वर्षों में ही इस फंड के जरिए खास तरह का ‘मंत्र’ सीख ले रहे हैं। उस फंड को भी मोदी जैसे ईमानदार प्रधानमंत्री चाहते हुए भी खत्म नहीं कर पा रहे हैं। अटल जी व मनमोहन सिंह तो अपने कार्यकाल में इस फंड को बढ़ाने को मजबूर हो गए थे। जबकि, वे इस फंड की बुराई को अच्छी तरह जानते थे।
दरअसल फंड में अधिकतर सांसदों का निहित स्वार्थ है। उस निहितस्वार्थ को पराजित करने की ताकत किसी ईमानदार प्रधानमंत्री में भी नहीं रही है। जबकि इस फंड में जारी रिश्वतखोरी के कारण सांसद की सांसदी भी जा चुकी है। हालांकि स्टिंग आपरेशन नहीं होता तो उसकी भी सांसदी नहीं जाती।
किंतु सुप्रीम कोर्ट चाहे तो सांसद फंड पर भी रोक लगा सकता है। यह अत्यंत जरूरी है। क्योंकि जब तक अधिकतर सांसद,सब सांसद नहीं, सांसद फंड में कमीशन लेते रहेंगे, तब तक आई.ए.एस. पर रोक कैसे लग पाएगी? जब तक बड़े-बड़े भ्रष्ट अफसरों पर रोक नहीं लगेगी, तब तक देश में भ्रष्टाचार कम कैसे होगा?
देश में भ्रष्टाचार कम नहीं होगा तो हमारी सेना को समुचित मात्रा में युद्ध सामग्री भी नहीं मिल पाएगी। क्योंकि संसाधनों की लूट जारी है। भ्रष्टाचार में लूट जारी रही तो अस्पतालों में संसाधनों की कमी के कारण बच्चे मरते रहेंगे। सभी सरकारी स्कूलों के लिए भवन, बेंच, टीचर व अन्य संसाधन नहीं मिल पाएंगे।
इस गरीब देश में शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा सरकार नहीं संभालेगी तो कौन संभालेगा? भ्रष्टाचार कम किए बिना कई अन्य तरह के वैसे जरूरी काम भी नहीं हो पाएंगे, देश की बाहरी-भीतरी सुरक्षा के लिए जिनकी सख्त जरूरत है। आज दोनों तरह के खतरे इतने बढ़ चुके हैं जितने खतरे इससे पहले कभी नहीं थे।
यह भी पढ़ेंः पार्टियों में कार्यकर्ताओं के घटने की वजह कहीं वंशवाद तो नहीं!