पटना। RJD में इतना सन्नाटा क्यों पसरा है भाई। चुनाव में जीत-हार लगी रहती है। लोकसभा का चुनाव हारे हैं, विधानसभा चुनाव तो सामने है। वैसे भी RJD के नेता लोकसभा चुनाव लड़ कहां रहे थे। वे तो नीतीश कुमार की खामियां गिनाते फिर रहे थे। लगता था कि विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हों। और अब विधानसभा चुनाव सामने है तो RJD में सन्नाटा पसरा है।
एक दशक तक सत्ता से बाहर रहने के बावजूद 2015 में समीकरण और परिस्थितियां ऐसी बनीं कि RJD को बिहार में सत्ता में भागीदारी मिल गयी। राजद को इस वास्तविकता को समझना चाहिए। वैसे भी राजद का मकसद बिहार की सत्ता ही पसंद है। लेकिन लोकसभा चुनाव में कामयाबी नहीं मिलने से राजद के लोग इतने हताश-निराश हो गये हैं कि उनकी बोलती बंद है।
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राजनीति में जीत-हार, उतार-चढ़ाव का दौर आते रहता है। दशकों से अजेय बन कर देश पर राज करने वाली पार्टी कांग्रेस को 1977 में विपक्षी दलों के जनता दल के रूप में बने ध्रुवीकरण ने इस कदर परास्त किया कि सबको लगने लगा कि अब कांग्रेस के दिन बहुरने वाले नहीं हैं। लेकिन तीन साल में कांग्रेस फिर खड़ी हो गयी और सत्ता हथियाने में कामयाब हो गयी। जनता दल अलग-अलग कुनबों में अपनी-अपनी जमात लेकर लौट गया।
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अलग-अलग कुनबों में बंटने के बाद या यह कहें कि जनता दल के बिखराव के बाद भाजपा ने कोशिश नहीं छोड़ी। इसका परिणाम यह हुआ कि अटल बिहारी वाजपेयी ने एनडीए की छतरी के तहत भाजपा की अगुआई वाली सरकार बना ली। फिर इसी पैटर्न पर कांग्रेस ने उन्हें सत्ता से बेदखल किया। लेकिन भाजपा अपने अभियान में लगी रही। उसके कार्यकर्ता कभी हताश-निराश होकर घरों में नहीं बैठे। नतीजा आज सबके सामने है। भाजपा अपने दम पर बहुमत से अधिक सीटें लाने में कामयाब हो गयी। साथ में एनडीए के घटक दलों का कल्याण भी भाजपा नेता के नाम पर ही हो गया।
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बिहार में विधानसभा का चुनाव अगले साल होना है। विपक्ष के पास तमाम तरह के मुद्दे मौजूदा नीतीश सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए उपलब्ध हैं। बढ़ते अपराध, सृजन घोटाला, मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड, शौचालय घोटाला जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष जनता के बीच जा सकता है। जनता में अपनी पैठ बना सकता है। विपक्ष को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लोकसबा का चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय चेहरे को लेकर लड़ा जाता है और विधानसभा का चुनाव राज्य स्तर के मुद्दों पर लड़ा जाता है। एनडीए ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर अगर लोकसभा में कामयाबी हासिल की तो जरूरी नहीं कि विधानसभा चुनाव में भी वहीं जादू चले। 2015 के विधानसभा का परिणाम बिहार देख चुका है। इसलिए विपक्षी दलों को घरों में दुबकने के बजाय जनता के बीच अपनी विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ेगी। संभव है, परिदृश्य बदल जाये।
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