पटना। बिहार के भोजपुर जिले के आरा की माटी से ताल्लुक रखने वाली बेबी काजल भोजपुरी की एक ऐसी गायिका के तौर पर अब जानी पहचानी जा रही हैं, जिनमें अपार संभावनाए हैं। बिहार की माटी और लोक रस को अपने स्वर में सजाने वाली बेबी काजल ने अपने स्कूल के दिनों से लोक गायकी में अपना करियर बनाने की ठानी। इन्होंने लोकगीतों के साथ ही साथ शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ले रखी है। आधा दर्जन से ज्यादा सुपरहिट भोजपुरी एलबमों में अपनी आवाज का जादू बिखेर चुकी काजल बिग गंगा चैनल के लिए भी कई सारे शो कर रही हैं। साथ ही साथ स्टेज के कार्यक्रमों में अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं। अपनी सफलता का श्रेय अपने माता पिता व लोक गायक छोटू छलिया को देने वाली बेबी काजल कहती हैं कि हर एक चीज को देखने का अपना नजरिया होता है। भोजपुरी ऐसी भाषा है, जिसमें जीवन से लेकर मरण तक के गीत मौजूद हैं। ऐसी समृद्ध भाषा कोई नहीं है। यह सच है कि आज बाजारवाद ने भोजपुरी के स्वरूप को विद्रूप कर दिया है, लेकिन भोजपुरी को मधुरता में पिरोने का काम भी भोजपुरी भाषी गायक गीतकार और श्रोताओं को ही करना है।
वह कहती हैं कि भोजपुरी समाज में लोकगीतों की समृद्ध परपंपरा रही है, जिसमें एक से बढ़कर एक गीत जीवन के हर मोड़ के लिए हैं। बिरह से लेकर मिलन तक। यहां तक कि मौसम के हिसाब से भी होली, चैती और कजली जैसे लोकगीत हैं। उस अवसर पर गाए जाने वाले गीत न सिर्फ महिलाओं को, बल्कि पुरुषों को भी हर्षित और रोमांचित करते रहे हैं। सोहर, विरहा, झूमर, देवी गीत, छठी मइया का गीत आदि भी खत्म होने के कगार पर हैं।
ऐसे दौर में आरा की लोक गायिका ने भोजपुरी की विलुप्त हो रही लोकगीतों की परंपरा को अपने मधुर आवाज में सजाने का बीड़ा उठाया। सोहर, झूमर, होली, देवी गीत, छठ गीत से लेकर निर्गुण भजन, बारहमासा, विवाह गीत, संझा-पराती तक को उन्होंने अपने स्वर में सजोया है।
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बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि लोक गायकी के साथ ही साथ बेहतर ऑफर आने पर वह भोजपुरी फिल्मों में बतौर नायिका भी किस्मत आजमाना चाहती हैं। आकर्षक नैन नक्श की मल्लिका काजल कहती हैं कि अच्छे और बुरे लोग सभी जगह हैं। अगर आपको अपने प्रतिभा के साथ ही साथ अपने हुनर पर विश्वास है तो आपको मंजिल जरूर ही मिलेगी।
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