PATNA : दिल्ली के चुनाव परिणाम की गूंज बिहार में सुनाई देगी। एग्जिट पोल के नतीजे अगर सच होते हैं तो दिल्ली में एनडीए को एक बार फिर मुह की खानी पड़ेगी। चुनाव परिणाम चाहे जो हो, बिहार में इसी साल होने वाले चुनाव में यह साफ होगा कि भाजपा नीतीश कुमार पर भारी पड़ती है या नीतिश भाजपा पर दमदार साबित होते हैं। वैसे एग्जिट पोल के परिणाम आम आदमी के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो नीतीश निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी चेरी बना कर रहेंगे। नीतीश को गठबंधन में पहली कामयाबी उसी वक्त मिल गयी थी, जब वैशाली में अमित शाह ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बता दिया।
बिहार एनडीए पर दिल्ली का चुनाव परिणाम कैसे असर डाल सकता है, इसे ऐसे समझिए। पहला यह कि भाजपा के साथ गठबंधन कर नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा। प्रचार में वह दिल्ली गये और भाजपा नेताओं के साथ मंच भी साझा किया। बिहार के विकास का माडल दिल्ली में भी लागू करने का वादा किया। नीतीश बिहारी वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा के पास सबसे मजबूत अस्त्र थे। अब अगर भाजपा की पराजय होती है तो नीतीश के विकास माडल को खारिज करने का दिल्ली में बसे बिहारी प्रमाणपत्र दे देंगे। उन्हें यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार के लोगों पर उनका जो जादू है, वह दिल्ली में बेअसर रहा। दिल्ली में बसे बिहारियों ने झटके में उन्हें दरकिनार कर दिया। यह नीतीश के लिए एक चेतावनी है।
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भाजपा की दिल्ली में पराजय से नीतीश को फायदा यह होना है कि भाजपा अब उनके दबाव में होगी। नीतीश कुमार की हर बात मानने के लिए भाजपा मजबूर होगी। भाजपा से अधिक सीटों पर जदयू के लड़ने की मांग पूरी करने में अब भाजपा ना-नुकुर नहीं करेगी। सवा सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग जदयू करता रहा है।
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जहां तक नुकसान की बात है तो नीतीश कुमार अभी तक इस मुगालते में रहे हैं कि उन्होंने बिहार में जितना काम किया है, उसकी गूंज बिहार से बाहर बसे बिहारी पहुंचाते रहे हैं। परिणाम एग्जिट पोल के अनुरूप रहे तो यह साफ हो जाएगा कि दिल्ली में बसा बिहारियों का बड़ा समाज ने उनकी बात नहीं मानी। बिहारियों ने उनके आग्रह के बावजूद आम आदमी पार्टी का समर्थन किया। यह नीतीश के लिए खतरे की घंटी है।
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वैसे भी नीतीश कुमार भाजपा के बिछाए जाल में फंस चुके हैं। उससे निकल पाना अब उनके लिए आसान नहीं। दिल्ली चुनाव परिणाम को CAA, NRC और NPR के विरोध के तौर पर भी देखा जाएगा। इनके खिलाफ पूरे देश में जिस तरह का आंदोलन खड़ा हुआ है और उसकी पहली प्रतिक्रिया दिल्ली विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकती है। परिणाम अगर प्रतिकूल होते हैं तो नीतीश कुमार को सचेत हो जाने की जरूरत है।
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बिहार का सामाजिक परिदृश्य जिस ढंग का है, उसमें किसी दल के लिए मुस्लिम मतों को दरकिनार करना मुश्किल है। अब मुस्लिम वोट शायद ही नीतीश की ओर जाएं, क्योंकि उन्होंने बिना कुछ कहे भारतीय जनता पार्टी के तीनों एजेंडों का कभी मौन तो कभी मुखर होकर समर्थन कर दिया है। ये एजेंडे देश के लिए वाजिब हैं या गैरवाजिब, यह बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन इन मुद्दों ने देश की मानसिकता को इस कदर प्रभावित किया है कि हर आदमी के दिमाग में अब एक ही बात चल रही है कि इससे देश में तनाव और विभाजन की स्थिति पैदा हो रही है।
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बिहार का डेमोग्राफी बताता है 15 से 20 प्रतिशत मुसलमान बिहार में हैं। ये वोट अगर नीतीश से खिसक जाते हैं तो भाजपा पर भारी पड़ने के बावजूद नीतीश के लिए यह महंगा साबित हो सकता है। इन वोटों का खिसकतना उनके लिए सबसे बड़ा नुकसान होगा। दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल ने जिस तरह अपने एम-वाई (मुसलिम यादव) समीकरण को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है और पिछड़ों को भी साथ लेने की कोशिश की है, उससे लगता है कि विपक्ष अगर कोई मजबूत गठबंधन बना लेता है तो यह नीतीश के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
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