मधुमक्खी पालन ने बदल दी प्रदीप की किस्मत, कारोबार 50 लाख

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तसवीर में बायें प्रदीप भारती मधुमक्खी पालन के बाक्स के साथ

पटना। इस सवाल पर कि जरा अपनी कहानी बताइए, वह बताते हैं- मै प्रदीप कुमार भारती, ग्रा.-पो.- सराय, जिला- सुपौल का निवासी हूं। मैंने सन् 2001 में अपनी इन्टर की पढ़ाई पूरी कर 2003 में प्राइवेट जाब करने दिल्ली चला गया। काम तो मिला, पर मजदूरी कम और काम अत्यधिक करना पड़ता था। शोषण की तो कोई सीमा ही नहीं थी। काफी दिक्तों का भी समना करना पडा़। इसी दौरान मेरे दिल में एक विचार आया कि मुझे कुछ अपना काम करना है और ऐसा काम, जिसमें अपने साथ-साथ और भी लोगों को एक अच्छा एवं बेहतर काम मिल सके। मधुमक्खी पालन का ख्याल भी अचानक मन में आया, जिसने आज मुझे आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है।

मैंने अगस्त 2003 के पहले सप्ताह में दिल्ली का अपना जाब छोड़कर अपने गांव लौट आया। मैंने अपने घर-परिवार को अपने दिल की बात बताई तो सभी काफी विरोध करने लगे कि हम छोटे लोग हैं। खेती-किसानी का काम तुम से नहीं हो पायगा। तुम सिर्फ जाब करो। उन्होंने मेरे विश्वास को कमजोर करने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं अपनी बातों पर अडिग रहा और हर मुश्किल का सामना करने को तैयार था। कहते हैं न कि मुश्किलों से भागो मत, बल्कि उन्हें चुनौती दो, मैंने वही करने की ठान ली।

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मुश्किलों से भागने वालों को मुश्किल भगा-भगा कर थका देती है, परंतु मेरे अंदर पूरा विश्वास था कुछ करने का। इसी दौरान मैंने कदम बढ़ाया और घूमने के उद्धेश्य से समस्तीपुर के पूसा यूनिवर्सिटी गया। जिस दिन गया था, तो पता चला कि दो दिवसीय मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण होना है। मैंने भी जानकारी के उद्धेश्य से इस प्रशिक्षण में चार सौ रुपये पटनाजमा कर पंजीकरण करा लिया। प्रशिक्षण में भाग लिया।

जब प्रशिक्षण चल रहा था, तभी मुझे भविष्य नजर आने लगा और जैसे ही प्रशिक्षण पूरा हुआ, वैसे ही मैंने वहां से पांच बाक्स खरीदे और शुरू कर दिया मधुमक्खी पालन का व्यवसाय। इसमें शुरूआत में तीन बक्सों का नुक्सान भी हुआ, लेकिन मैंने साहस नहीं छोड़ा। परिवार से लेकर समाज वालों ने बहुत ही नकारात्मक भाव दिखाया, लेकिन मैंने हमेशा अपनी अंतरात्मा की आवज सुनी।

मेरा अनुभव है कि जिसके अंदर साहस होता है, वही व्यक्ति व्यापार कर सकता है। फिर मैंने अपने प्रशिक्षकों से संम्पर्क किया। उनसे सलाह-मशविरा किया और मैंने फिर से 2004 में दस बक्से और लेकर काम शुरू किया। व्यापार के इस सफर में उतार एवं चढ़ाव, दुःख एवं सुख हर परिस्थिति को झेलते हुए आगे बढता गया। आज मुझे गर्व है कि अपने मकसद में कामयाब हूं। मैंने सफलाता को प्राप्त किया है।

सन् 2013 में मैंने भारत मधु नामक से अपनी कंम्पनी की शुरूआत की और सितम्बर 2003 में 10 बक्से से शुरू किया हुआ सफर आज 1000 बक्से तक पहुंच गया है। 2013 में शुरू किया गया भरती मधु पालक ब्रांण्ड पूरे 10 जिलों में फैल चुका है। इससे सालाना आय 50 लाख रुपये तक हो गयी है। सफर अभी जारी है। मुकाम तक पहुंचने की मशक्कत में लगा हूं।

यदि अगर कुछ भी कोशिश करने का साहस मेरे अन्दर नहीं होता तो जरा सोचिये कि आज मैं कहां होता? मैंने अपनी हर परिस्थिति में खुद पर भरोसा रखा और हिम्मत नहीं हारा। 2014 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा एक उन्नत उद्यमी का पुरस्कार भी मुझे मिला। मैंने अपने सपनों को कर्मों से सींचा है, तब जाकर एक सपने को साकार वृक्ष के रूप में पाया।

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