पटना। तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता बनने पर ग्रहण लग गया है। घटक दलों में उनके नाम पर एका नहीं बन पा रही है। सीटों के बंटवारे का लफड़ा अलग से है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह अंतिम वक्त तक सीटों पर झमेला होता रहा, विधानसभा चुनाव में भी वैसी ही स्थिति का अनुमान है।
प्रेस कांफ्रेस से नदारद रहे तेजस्वी
राबड़ी देवी देवी के आवास पर मंगलवार को महागठबंधन के घटक दलों के नेता तो जुटे, लेकिन तेजस्वी को नेता मानने की बात पर न किसी ने हां कि और न ना कहा। साफ तौर पर कहें तो सभी ने कन्नी काट ली। खुद तेजस्वी बैठक के बाद हुए प्रेस कांफ्रेंस से नदारद रहे। अलबत्ता हम (सेकुलर) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी औक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदनमोहन झार जरूर उपस्थित थे।
अंदरूनी समस्याओं से जूझ रहा आरजेडी
लोकसभा चुनाव के बाद आरजेडी लगातार समस्याओं से जूझ रहा है। जीरो पर आउट होने के बाद प्रतिपक्ष के नेता और सीएम फेस के तौर पर खुद को बताने वाले तेजस्वी यादव गायब हो गये थे। वे कहां थे, इसकी जानकारी पार्टी के किसी नेता को नहीं थी। विधानसभा सत्र के दौरान भी वह लगातार सदन से गैरहाजिर रहे। स्थिति इतनी खराब हो गयी कि उनके नेता, प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे की मांग भी उठने लगी।
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राबड़ी ने पार्टी की बागडोर संभालने की बात तो कही, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं पड़ा। दरअसल आरजेडी और कांग्रेस के सिर पर विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में टूट का खतरा भी मंडरा रहा है। शिवानंद तिवारी और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे कद्दावर नेता भी नीतीश को नेता मान कर फिर से महागठबंधन में शामिल होने की बात करने लगे थे। यह अलग बात है कि नीतीश ने इस तरह के प्रस्तावों पर अपनी ओर से कोई टिप्पणी नहीं की।
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लालू यादव के घर में भी झगड़ा भारी
लालू की बीमारी और जेत प्रताप यादव के पारिवारिक विवाद ने घर में ही कोहराम मचा रखा है। तलाक का मामला कोर्ट में जाने के बाद तेज प्रताप भी लंबे समय तक लापता रहे। लौटे भी तो घर से दूरी बनाये रखी। नीतीश कुमार ने उन्हें अलग घर आवंचित कर दिया। वह वहीं अपने नाटकीय अंदाज में रह रहे हैं। कभी कहते हैं कि तेजस्वी के लिए वह कृष्ण की भूमिका निभायेंगे तो कभी पार्टी में अपनी और अपने समर्थकों की उपेक्षा का आरोप लगाते रहे हैं।
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