डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह को हमेशा सर्वोच्च स्थान मिला पढ़ाई में। तनावों ने ही विक्षिप्त बना दिया महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह को। यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा। लंबे समय से वे मानसिक असंतुलन की हालत में हैं। पत्नी से अनबन और शोध पत्र की चोरी उनके जीवन की दो ऐसी घटनाएं रही हैं, जिनकी उनके मानसिक हालात को बेपटरी करने में बड़ी भूमिका रही। फिलहाल वषिष्ठ नारायण सिंह पटना के पीएमसीएच अस्पताल में भर्ती हैं। उनकी हालत और उनकी मेधा के बारे में वरिष्ठ पत्रकार मधुरेश सिंह ने फेसबुक पर दो पोस्ट शेयर किये हैं। पढ़ें, हूबहू उनके ही शब्दों मेः
आईसीयू में ‘देशभक्ति’, ‘सिस्टम’ @ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह
‘एगो फोटो घींच द …’ मैंने घींच दी। उनको दिखाई। मुझे लगा, वे मुस्कुराने की कोशिश कर रहे हैं। नाकामयाब। लेकिन, मैं, रोने में कामयाब रहा। मैं, इसमें भी कामयाब रहा कि मेरी रुलाई, किसी को न दिखे; कोई हिचकी-सिसकी न सुने। आईसीयू में गंभीर रहना पड़ता है। मैं, गंभीर रहने में कामयाब रहा। आईसीयू में मेनटेन करना पड़ता है। मैं, मेनटेन करने में कामयाब रहा।
उनको देखकर काठ मार गया था। इस मोड से मुक्त होने में कामयाब रहा। मैं हतप्रभ, निःशब्द रहने में कामयाब रहा। और नॉर्मल होने में भी। उनकी पनियल आंखें लगातार मुझ पर टिकी थीं। मगर मैं अपनी आंखों को इधर-उधर घुमाने में कामयाब रहा; नजर फेर कर, पलटकर आईसीयू से बाहर आ जाने में कामयाब रहा। मुझे लगा, वाकई मैं बहुत कामयाब हूं। कामयाबी जिंदाबाद।
वशिष्ठ बाबू की यहां दी गयी तस्वीर उन्हीं के कहने पर है। उनके भतीजे मिथिलेश ने बताया- ‘बड़े पापा, अक्सर फोटो खींचने को कहते रहते हैं।).
कहीं ऐसा भी होता है? जी …, बिल्कुल। खुद देख लीजिए। बेड पर लेटे इस शख्स का बॉयोडाटा देख, पढ़ लीजिए। आदमी की दुनिया, इसको दुरुस्त या आदर्श स्थिति में रखने का जिम्मेदार सिस्टम …, यानी सबकुछ से घिना जाएंगे; विकृति हो जाएगी। खासकर महान भारत और महानतम बिहार की पूरी जगलरी जान जाएंगे।
- 2 अप्रैल 1946 : जन्म
- 1958 : नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान
- 1963 : हायर सेकेंड्री की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान
- 1964 : इनके लिए पटना विश्वविद्यालय का कानून बदला। सीधे ऊपर के क्लास में दाखिला. बी.एस-सी.आनर्स में सर्वोच्च स्थान
- 8 सितंबर 1965 : बर्कले विश्वविद्यालय में आमंत्रण दाखिला.
- 1966 : नासा में
- 1967 : कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिक्स का निदेशक
- 1969 : द पीस आफ स्पेस थ्योरी विषयक तहलका मचा देने वाला शोध पत्र (पी.एच-डी.) दाखिल
- बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें “जीनियसों का जीनियस” कहा
- 1971 : भारत वापस
1972-73: आइआइटी कानपुर में प्राध्यापक, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (ट्रांबे) तथा स्टैटिक्स इंस्टीट्यूट के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। 8 जुलाई 1973 : शादी। जनवरी 1974 : विक्षिप्त, रांची के मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती। 1978: सरकारी इलाज शुरू। जून 1980 : में सरकार द्वारा इलाज का पैसा बंद। 982 : डेविड अस्पताल में बंधक।
9 अगस्त 1989 : गढ़वारा (खंडवा) स्टेशन से लापता। 7 फरवरी 1993 को डोरीगंज (छपरा) में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर फेंके गए जूठन में खाना तलाशते मिले। तब से रुक-रुक कर होती इलाज की सरकारी/ प्राइवेट नौटंकी। पिछले तीन दिनों से पीएमसीएच के आईसीयू में भर्ती। (खबर है कि जान बची हुई है। जल्द रिलीज हो जाएंगे)।
बहुत ही मामूली आदमी का बेटा वशिष्ठ से आखिर क्या गलती हुई कि आज इस सिचुएशन में हैं? सिर्फ और सिर्फ यही कि उनके पोर-पोर में देशभक्ति घुसी थी। अमेरिका का बहुत बड़ा ऑफर ठुकरा कर अपनी मातृभूमि (भारत) की सेवा करने चले आए। और भारत माता की छाती पर पहले से बैठे सु (कु) पुत्रों ने उनको पागल बना दिया।
वह वशिष्ठ पागल हो गया, जिनका जमाना था; जो गणित में आर्यभट्ट व रामानुजम का विस्तार माना गया था। वही वशिष्ठ, जिनके चलते पटना विश्वविद्यालय को अपना कानून बदलना पड़ा था। इस चमकीले तारे के खाक बनने की लम्बी दास्तान है।
डॉ. वशिष्ठ ने भारत आने पर इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कोलकाता) की सांख्यिकी संस्थान में शिक्षण का कार्य शुरू किया। कहते हैं यही वह वक्त था, जब उनका मानसिक संतुलन बिगड़ा। वे भाई-भतीजावाद वाली कार्यसंस्कृति में खुद को फिट नहीं कर पाए। कई और बातें हैं। शोध पत्र की चोरी, पत्नी से खराब रिश्ते। दिमाग पर बुरा असर पड़ा। फिर सरकार और सिस्टम की बारी आई। नतीजा सामने है।
खैर, उन तमाम लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद, जो अपने को अनाम/ गुमनाम रखते हुए, डॉ.वशिष्ठ के भोजन, पटना में उनके रहने का इंतजाम, दवाई आदि का प्रबंध किए हुए हैं। वरना…? यह वह जमात या मिजाज है, जो अपने दम पर दुनिया को यह बताए हुए है कि घिना देने वाली तमाम स्थितियों के बावजूद आदमियों की दुनिया में, आदमी के पास, आदमी को, जिंदा रखने की ताकत है। इन सबके प्रति फिर से आभार। अरे, वशिष्ठ का क्या गया? गया तो इस देश-समाज का, जो उनका उपयोग नहीं कर पाया।
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