- अमरेश कुमार सिंह
हिन्दी हार्ट लैंड माने जाने वाले तीन राज्यों में भाजपा की पराजय के बाद विपक्षी दलों के लिए यह सर्वथा अनुकूल असर था कि वे अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करते और भाजपा के सामने कड़ी टक्कर की चुनौती पेश करते। पराजय से भाजपा का मनोबल वैसे ही कमजोर हुआ है। हालांकि राफेल के मुद्दे पर उसे सुप्रीम कोर्ट ने संजीवनी प्रदान कर दी है। एकटुटता का स्वर्णिम अवसर विपक्ष ने गंवा दिया। द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता कर विपक्ष के कुछ महत्वाकांक्षी नेताओं में खलबली मचा दी। एक तो संपूर्ण विपक्ष का ऐसे अवसर पर नहीं जुटना और पहले से प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष में दबी जुबान होती रही खींचतान एक साथ सबके नहीं जुटने की वजह बनी।
राजस्थान में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भाजपा विरोधी विपक्षी एकजुटता की इबारत लिखने का प्रयास तो हुआ, मगर मौके पर तीन पार्टियों के सुप्रीमो की गैरहाजिरी ने सारा मजा किरकिरा कर दिया। यूं कहिए कि राजस्थान में भाजपा विरोधी एकता मंच की हवा निकलने की आवाज धीरे, मगर एकाग्रता से सुनी गई और एक बार फिर रंग में भंग पड़़ने का संकेत मिला।
बात हो रही है मायावती, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी की। ममता बनर्जी और मायवती तो पहले से ही खुद को प्रधानमंत्री की उम्मीदवार मानती रही हैं। सपा नेता अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार बताते रहे हैं।
शपथ ग्रहण समारोह में न ममता पहुंची, न माया और न अखिलेश ही आये। ममता बनर्जी ने अपने निजी कारणों का हवाला देते हुए प्रतिनिधियों को भेज कर औपचारिकता निभाई। वहीं बहन मायावती ने तो ऐसा करना भी मुनासिब नहीं समझा। बेंगलुरु के बाद दूसरी बार 12 विपक्षी दलों के नेताओं ने जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत की।
दक्षिण भारत के जाने माने राजनेता द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन का राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने का आया बयान इस विपक्षी एतका के रंग में भंग डालने वाला इसका बड़ा कारण है। स्टालिन ने राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री कह दिया था। इससे विपक्षी दलों में राहुल गांधी की स्वीकार्यता पर मुहर लगने के संकेत के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन ममता बनर्जी, मायावती और अखिलेश की अनुपस्थिति ने विपक्षी एकता पर सवाल खड़े कर दिये हैं।
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ममता व मायावती पहले भी कई मौकों पर राहुल गांधी को अपरिपक्व नेता होने का संकेत दे चुकी हैं। अखिलेश यादव भी कई बार मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री का प्रत्याशी बता चुके हैं। मौके पर राकांपा के शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, तेदेपा के चंद्रबाबू नायडू, जेडीएस के पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला, झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन, झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी, राजद के तेजस्वी यादव, लोजद के शरद यादव, द्रमुक के स्टालिन, कनिमोझी और टीआर बालू, सपा के राजेश कुमार (विधायक), असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बदरुद्दीन अजमल उपस्थित थे। पर, उत्तर प्रदेश से अखिलेश और मायावती की गैरहाजिरी तथा बंगाल से ममता का न आना यह सवाल खड़े करता है कि क्या चुनाव पूर्व विपक्षी पार्टियां एकजुट हो पायेंगी। यह अलग बात है कि चुनाव बाद ताकत को आंक कर ये एकजुट हो जायें। जैसे मध्यप्रदेश में मायावती ने कांग्रेस को समर्थन देकर किया, लेकिन चुनाव से पहले एकता की गुंजाइश कम ही दिखाई पड़ती है।
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