- सुरेंद्र किशोर
मौत के सौदागरों, क्रूर अपराधियों, बड़े-बड़े भ्रष्टाचारियों और माफियाओं के लिए सबक सिखाने लायक सजा सुनिश्चित करनी है? यदि हां तो इस देश में कम से कम तीन काम तुरंत करने होंगे। पहला यह कि अदालतें इस मुहावरे पर पुनर्विचार करे कि ‘‘बेल इज रूल एंड जेल इज एक्सेप्सन।’’ यानी, जमानत नियम है और जेल अपवाद। अब बेल अपवाद हो और जेल नियम।
दूसरा, इस न्याय शास्त्र को बदला जाए कि ‘‘जब तक कोई व्यक्ति अदालत से दोषी सिद्ध नहीं हो जाता, तब तक उसे निर्दोष ही माना जाए।’’ अब होना चाहिए इससे ठीक उलट। तीसरा, सुप्रीम कोर्ट ने यह कह रखा है कि किसी आरोपी का डी.एन.ए., पालीग्राफी व ब्रेन मैपिंग टेस्ट उसकी मर्जी के बिना नहीं कराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि करीब दस साल पहले के अपने इस निर्णय को वह बदल दे।
सुप्रीम कोर्ट तथा दूसरी अदालतों ने कोरोना काल में विभिन्न सरकारों को अच्छी-खासी फटकार लगाई है। अच्छा किया। पर, उपर्युक्त तीन काम यदि हो जाएं तो मौत के सौदागरों का हौसला पस्त होगा। और, किसी भी सरकार को कोरोना जैसी महा विपदा से लड़ने में सुविधा होगी।
कोरोना काल में इस देश व विश्व के लोगों को जो अभूतपूर्व विपदा झेलनी पड़ी है और पड़ रही है, उसके लिए दो तरह के तत्व जिम्मेदार हैं। एक तत्व ‘आसमानी’ है। दूसरा सुलतानी ! आसमानी पर तो विश्व की किसी भी सरकार का कोई वश नहीं चल रहा है। भारत जैसी जर्जर व्यवस्था वाली सरकारों का भला क्या चलेगा। आजादी के बाद से ही इस व्यवस्था को जर्जर, भ्रष्ट व पक्षपातपूर्ण बना दिया गया। यह भ्रष्टों के लिए स्वर्ग माना जाता है। अपवादों की बात और है। पर, इस देश की सरकारें जितना कर सकती थीं, उतना भी नहीं कर पाईं तो उसके दो कारण हैं।
वे कारण आसमानी नहीं, बल्कि ‘सुलतानी’ हैं। इनमें तो बदलाव व सुधार हो ही सकता है। कुछ ईमानदार सत्ताधारी उसकी कोशिश करते भी रहे हैं। किंतु सफलता सीमित है।
एक तो भारी भ्रष्टाचार के कारण आजादी के बाद से ही अपवादों को छोड़कर इस देश के सिस्टम को ध्वस्त और शासन व सेवा तंत्र के अधिकांश को निकम्मा व लापारवाह बना दिया गया। मनुष्य देहधारी तरह-तरह के गिद्धों को तो यह लगता है कि उन्हें तो कभी कोई सजा हो ही नहीं सकती।
अधिकतर मामलों में होती भी नहीं। एक तत्व यह भी है कि कोरोना की पहली लहर के बाद सरकारें थोड़ी लापरवाह हो गईं। दूसरी लहर के लिए वे कम ही तैयार थीं।
एक छोटा उदाहरण- दवा की कालाबाजारी व मिलावटखोरी पहले भी होती रही है। इस बार आक्सीजन सिलेंडर व दवाओं की भीषण कालाबाजारी ने तो न जाने कितने मरीजों को यह दुनिया छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया। इन अपराधों में गिरफ्तार हो रहे गिद्धों को सबक सिखाने वाली सजा सुनिश्चित तभी हो सकती है, जब ऊपर के तीन सूत्री बदलाव के लिए न्यायालय सरकार से मिलकर ठोस करें। यदि यह बदलाव हो गया तो सरकारों को फटकार लगाने की जरूरत अदालतों को भरसक नहीं पड़ेगी। क्या कभी ऐसा हो पाएगा? पता नहीं! भले न हो, पर कहना मेरा कर्तव्य है एक नागरिक के नाते।
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