पटना। बिहार में अपराधियों को सजा देने का फैसला अब लोग खुद करने लगे हैं। हफ्ते भर में माब लिंचिंग (Mob lunching) की घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं। पहली घटना बेगूसराय में हुई, जहां एक छात्रा को अगवा करने पहुंचे तीन कुख्यात अपराधियों (Veteran Criminals) को पब्लिक ने पीट-पीट कर मार डाला। दूसरी घटना सीतमढ़ी में हुई, जहां वैन चोरी के आरोप में एक की लोगों ने इस कदर पिटाई की कि उसने असप्ताल चने के पहले ही दम तोड़ दिया। सासाराम में मंगलवार (11 सितंबर) को बैंक में पैसे जमा करने जा रहे एक रेलवे कर्मचारी से रुपये लूटने के प्रयास में पकड़े गये अपराधकर्मी को लोगों ने पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। कुछ ही दिन पहले दिनदहाड़े कोर्ट परिसर में कुख्यात अपराधी संतोष झा की हत्या कर दी गयी थी।
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ये तीनों घटनाएं या लगातार हो रही इस तरह की घटनाएं गवाह हैं कि लोगों का अब कानून से भरोसा उठ गया है। वे खुद अपराधियों के बारे मेंफैसला सुनाने लगे हैं। सीतामढ़ी की घटना में 150 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गयी है। बेगूसराय की घटना में थानेदार को सस्पेंड कर दिया गया है।
पखवाड़े भर में इस तरह की तीन घटनाओं ने पुलिस सुरक्षा की पोल खोल कर रख दी है। अपराधी जिस तरह बेलगाम हो गये हैं, उसी तरह पब्लिक भी उनसे निपटने की खुद तैयारी कर चुकी है। यद्यपि कि कानून भी पीट-पीट कर किसी की हत्या की इजाजत नहीं देता, लेकिन जनता विवश है। अव्वल तो अपराधी पकड़े नहीं जाते और पकड़े जाने के बाद जमानत पर छूट कर फिर उसी काम में लग जाते हैं। वास्तविक जंगल राज तो यही है, जहां जंगल का कानून काम कर रहा है। अपराधियों के प्रति नफरत स्वाभाविक है, लेकिन नफरत का यह मुकाम कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता।