पटना। दो दिनों में बिहार में दो हत्याओं से सनसनी फैल गयी है। नालंदा में परसों पत्रकार के बेटे की हत्या हुई, वहीं बाढ़ में रुग्बी खिलाड़ी मारा गया। इन दोनों ही घटनाओं से पत्रकारों और आम लोगों में भारी उबाल है। बाढ़ में रुग्बी खिलाड़ी की गोली मार कर हत्या की गयी है। वह उभरता हुआ स्पोर्ट्स मैन था और कई बार राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय रुग्बी प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन कर चुका था।
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हालाँकि हत्या के कारणों का अभी तक पता नही चल पाया है। यह घटना तब हुई, जब आज नेशनल टीम में चयन के लिये अधिकारी बाढ़ आ रहे थे और मृतक से मिलने वाले भी थे। इसी बीच अज्ञात लोगों ने इस प्रतिभा का गोलियों से भून कर अंत कर दिया।
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बाढ़ थाना की पुलिस ने मौके से खिलाड़ी को अस्पताल पहुंचाया, परंतु चिकित्सक ने उसे मृत घोषित कर दिया। मृतक के सीने में गोली मारे जाने की बात सामने आई है। पुलिस साथी खिलाड़ियों से भी पूछताछ कर रही है और अपराधी तक जल्द से जल्द पहुँचने का प्रयास कर रही है। ASP लिपि सिंह के आने के बाद अपराध के दृष्टिकोण से शांत पड़ चुके अनुमण्डल में अचानक हुए इस हत्याकांड से सभी स्तब्ध और दुखी हैं। मृतक के साथी खिलाड़ी और कोच ने बताया कि वह काफी प्रतिभाशाली खिलाड़ी था, जिसका नेशनल टीम में चयन होना पक्का था।
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बहरहाल पुलिस हर बिंदु पर जाँच कर रही है और शव का पोस्टमार्टम करा उसके परिजनों को सौंप दिया गया है। दूसरी तरफ पुलिस ने शीघ्र ही इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाते हुए अपराधियों को गिरफ्तार कर लेने की बात कही है।
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पत्रकार के बेटे की हत्या पर वरिष्ठ पत्रकार व पत्रकार यूनियन के नेता राकेश प्रवीर ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है- अंधेरा गहराने का संकेत तो नहीं! उन्होंने लिखा- वर्षों से हम सबसे जुड़े पत्रकार आशुतोष कुमार आर्य हिंदुस्तान अख़बार के नालंदा के ब्यूरो चीफ हैं। अश्विनी उनका इकलौता पुत्र था। बमुश्किल 16 वर्ष की उम्र होगी। उसे क्रूरता पूर्वक मार डाला गया। मारने के पहले आंखे फोड़ दी गई थीं। अब अश्विनी कभी नहीं लौटेगा। उसकी सिर्फ यादें रह गई हैं। घरवाले इस सदमें से पता नहीं कब उबरेंगे।
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हालांकि जो जानकारी सामने आ रही है उसमें इस नृशंस हत्या में किसी नजदीकी परिजन के शामिल होने की बात कही जा रही है। दो लोग हिरासत में लिए गए है।जितनी जल्द वास्तविक हत्यारे पकडे जायें, उतना अच्छा। लेकिन यह घटना यह साबित करती है कि अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। उनमें शासन और न्यायपालिका का भय नहीं है। उन्हें लगता है कि सब कुछ आसानी से अपने पक्ष में कर लेंगे। यह धारणा सम्पूर्ण व्यवस्था के लिए भयावह है। हमारे लिए, आपके लिए, राजनेताओं के लिए, न्यायपालिका के लिए और पुलिस के लिए भी। इसलिए कानून का शासन स्थापित करना और अपराधियों में उसका खौफ पैदा करना जरूरी है। तभी हम सभ्य कहलाने के अधिकारी होंगे। जहाँ कानून का खौफ न हो वहां जंगलराज आते देर नहीं लगती।
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अभी कुछ ही दिनों पूर्व बिहार के पुलिस प्रमुख गुप्तेश्वर पांडेय ने सभी जिलों के एसपी को पत्र लिखकर पत्रकारों और उनके परिवार की सुरक्षा और सम्मान पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया था। अभी शायद 10 दिन भी नहीं बीते होंगे कि नालंदा से पत्रकार- पुत्र की हत्या की खबर आई है। नालंदा मुख्यमंत्री का गृह जिला है। यहां से ऐसी खबर की उम्मीद शायद डीजीपी को भी नहीं होगी। मगर डीजीपी महोदय से एक सहज सवाल तो बनता है, क्या यह अंधेरा गहराने का संकेत नहीं है?
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