बेरोजगारी की मार से त्रस्त हैं देशभर के पत्रकार

0
771
  • लोकनाथ तिवारी
लोकनाथ तिवारी
लोकनाथ तिवारी

की रे किछू काजेर संधान पेली, छ मास धोरे घोरे बंदी होये पोड़े आची। (क्या रे कोई काम काज खोजा, छह महीने से घर में कैद होकर रह गया हूं)। कोलकाता के मेरे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र ने जब व्हाट्सअप पर सुबह-सुबह ये मैसेज भेजा तो कुछ समय के लिए मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। लॉकडाउन के पहले चरण में ही नौकरी गंवा चुके पत्रकार के सामने दो जून की रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। घर में बूढ़े मां-बाप हैं। अपना मकान है इसलिए बीपीएल श्रेणी में नहीं है, अतः फ्री राशन का भी हकदार नहीं है। मेरे मन में तरह-तरह के बुरे विचार आने लगे। अप्रैल में मैंने बड़ी मजबूती से उसे दिलासा दी थी कि कुछ न कुछ व्यवस्था जरूर होगी, लेकिन अब क्या कहता, क्या जवाब देता। मार्च से ही वेतन नहीं मिलने के कारण अगस्त के प्रथम सप्ताह में मैंने स्वतः ऑफिस जाना बंद कर दिया था। अब उसके मैसेज से मन विचलित हो रहा था।

आधे घंटे तक संकटमोचन का स्मरण करने के बाद भी मैसेज भेजने का साहस नहीं जुटा पाया। कहीं वह अधिक हताश न हो जाये, इसलिए मैंने उसे फोन लगाया और हाय-हैलो के बाद अपनी स्थिति बतायी कि मैं भी बेरोजगार हो गया हूं। एक तो पांच महीने का वेतन नहीं मिला दूजे अब नौकरी भी नहीं रही। घर बैठ गया हूं। मेरी स्थिति जानकर वह और दुखी हो गया लेकिन उसे संतोष भी हुआ कि वह अकेला इस स्थिति में नहीं है। फिर बातों ही बातों में उसने बताया कि राहुल, प्रभात, संतोष, राजीव, ईश्वर सहित दर्जनों साथियों का यही हाल है। हम तो सब्जी भी नहीं बेच सकते, ट्यूशन पढ़ा सकते थे, लेकिन कोरोनाकाल में वह भी बंद है.

- Advertisement -

लॉकडाउन ने हमारी रोजी-रोटी ही नहीं छिना बल्कि भविष्य को भी अंधकारमय बना दिया है। ऐसे समय में जब पश्चिम बंगाल में अगले साल 2021 में चुनाव होनेवाला है। बंगाल में मीडिया में हाहाकार मचा हुआ है। सैकड़ों पत्रकार बेरोजगार हो गये हैं। दर्जन भर अखबार बंद हो गये हैं, जो छप रहे हैं, वहां भी छंटनी जारी है। पत्रकारों यह हाल केवल बंगाल में ही नहीं है। देश भर से इसी तरह की खबरें मिल रही हैं। कई पत्रकार तो आत्महत्या भी कर चुके हैं। बेरोजगारी का ये दर्दनाक आलम केवल पत्रकारिता की ही नहीं है। क्षेत्रों में भी स्थिति कमोबेश वही है।

CMIE की अपनी ताज़ा रिपोर्ट में आगाह किया है कि जुलाई महीने में 50 लाख नौकरियां चली गईं। पिछले साल के औसत के मुकाबले इस साल अब तक 1 करोड़ 90 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। साफ है कि कोरोनावायरस संकट का असर अर्थव्यवस्था पर गहराता जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार फरवरी 2020 में ही बेरोजगारी दर बढ़कर 4 महीने के उच्च स्तर 7।78% पर पहुंच गयी थी।

पिछले साल एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि साल 2019 में भारत में बेरोजगारी दर 45 सालों में अधिकतम स्तर पर थी। अर्थव्यवस्था में मंदी आ रही थी। सबसे अधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र कृषि इस स्थिति में नहीं है कि इतने लोगों को खपा पाए। इसके बाद कोरोनावायरस की महामारी आ गई। इससे भारत में एक और बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। यानी पलायन की ऐसी स्थिति जो कभी नहीं देखी गई। यह पलायन शहरी क्षेत्रों में आर्थिक रूप से सक्रिय लोगों का था। ये लोग पहले से दयनीय ग्रामीण क्षेत्रों में लौटने लगे। अनुमान के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों के 10 करोड़ लोग ऐसे हैं जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हो गए। दूसरी तरफ ऐसे पर्याप्त उपाय नहीं हैं जो उनकी उत्पादकता को ग्रामीण क्षेत्रों में बरकरार रख पाएं। इसने भारत को अभूतपूर्व बेरोजगारी के संकट में धकेल दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि 41 साल में पहली बार अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी। इसका सीधा का मतलब है कि पहली बार कोई विकास दर्ज नहीं होगा। इसलिए भीषण बेरोजगारी जारी रहेगी, नतीजतन गरीबी का स्तर बढ़ेगा।

इसी बीच अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने जीवनयापन को हुए नुकसान का आकलन किया है। यह अनुमान बताता है कि विश्व का आधा श्रम बल जो असंगठित क्षेत्र का कामगार भी है, तत्काल प्रभाव से अपनी रोजीरोटी से हाथ धो बैठेगा। इसका मतलब है कि 1।6 बिलियन असंगठित कामगार बेरोजगार हो जाएंगे। यह आंकड़ा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत की आधी से ज्यादा आबादी के बराबर है। मार्च में करीब 2 बिलियन असंगठित क्षेत्र के कामगार अपनी 60 प्रतिशत आय खो चुके थे। इन कामगारों की आय इतनी ज्यादा नहीं है कि वे अधिक समय तक बिना रोजगार के जीवन की मूलभूत जरूरतें पूरी कर पाएं। अप्रैल में उनका रोजगार पूरी तरह खत्म हो गया और उनकी आय शून्य हो गई।

13 मई 2020 को यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यह स्थिति 4-6 करोड़ लोगों को भीषण गरीबी के दलदल में धकेल देगी। रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक गरीबी रेखा से नीचे विश्व की वह आबादी आती है जो प्रतिदिन 143.41 (1.90 अमेरिकी डॉलर) रुपए से कम पर जिंदगी गुजारती है। 2020 तक वैश्विक गरीब 8।2 प्रतिशत बढ़कर 66.5 करोड़ हो जाएंगे। 2019 में ऐसे लोग 8।2 प्रतिशत यानी 63.2 करोड़ थे। दुनियाभर के 36 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से तैयार की गई यह रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक गरीबों में यह अप्रत्याशित वृद्धि 1998 से नहीं देखी गई है। उल्लेखनीय है कि 1998 में दुनिया 1997 में आए एशिया के वित्तीय संकट के झटके से जूझ रही थी।

यह विडंबना ही है कि कोरोना काल में पिछले 5 महीनों में लगभग 2 करोड़ लोगों ने नौकरियां गंवाईं। फिर भी सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा नहीं है। झूठी और भ्रामक खबरों के जरिये जनमानस को भटकाया जा रहा है। नफ़रत फैलायी जा रही है।

- Advertisement -