चुपचाप चला गया संघर्ष की प्रेरणा देने वाला मसीहा जार्ज फर्नांडीस

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जार्ज फर्नांडिस के नाम पर किसी हवाई अड्डे का नामकरण करने की मांग भाजपा के राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने केंद्र सरकार से की है।
जार्ज फर्नांडिस के नाम पर किसी हवाई अड्डे का नामकरण करने की मांग भाजपा के राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने केंद्र सरकार से की है।

नयी दिल्ली। वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व रक्षा मंत्री जार्ड फर्नींडीस का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। पिछले एक दश्उक से वह अलजाइमर की बीमारी से पीड़ित थे। वे लाखों यवाओं की प्रेरणा और आश्वासन भी थे। उके निधन ने प्रधानमंत्री समेत पूरे देश को मर्माहत कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन, झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहरा शोक प्रकाट किया है। 1977 में जार्ज ने बिहार के मुजफ्फरपुर से लोकसभा का चुनाव जीता था। जदयू बनने पर वह उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने थे।

जार्ज साहब के निधन पर वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस काउंसिंल के सदस्य जयशंकर गुप्त ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है- शत शत नमन उस समाजवादी योद्धा, जार्ज फर्नांडिस को, जो सत्तर-अस्सी के दशक में हमारे जैसे लाखों छात्र-युवाओं के हीरो, संघर्ष की प्रेरणा और आश्वासन थे। जहां अन्याय, शोषण और उत्पीड़न और कुव्यवस्था के लिए संघर्ष था, वहां जार्ज थे।

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जार्ज साहेब के साथ समाजवादी युवजन सभा के एक छात्र युवा सिपाही से लेकर पत्रकार के रूप में भी हमारा गहरा जुड़ाव था। वह हमारे पिता समाजवादी नेता, स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व विधायक स्व. विष्णुदेव के मित्र, नेता होने के साथ ही हमारे हीरो भी थे, लेकिन संबंध मित्रवत ही थे। हमने उनके निवास पर रह कर फीचर एजेंसी, लेबर प्रेस सर्विस का काम किया था।

बिहार प्रवास के दौरान भी लगातार उनसे जुड़ाव रहा। उनके साथ कई कार यात्राएं कीं। बहुत सारी स्मृतियां हैं। संजोकर लिखने की कोशिश करूंगा। एक मुश्किल यह है कि जिनके बारे में आप बहुत कुछ जानते हैं, उनके बारे में कुछ लिखना उतना ही दुरूह होता है। जिनकी दहाड़ से बड़े से बड़े सत्ता प्रतिष्ठान दहल जाते थे, जिनके भाषणों और लेखनी से संसद हिल जाती थी, जिनके एक इशारे पर बंबई का जनजीवन ठप हो जाता था, रेल का चक्का जाम हो जाता था, वह जार्ज फर्नांडीस चुपचाप इस दुनिया से चले गए।

पिछले एक दशक से अलजाइमर की बीमारी के चलते रोग शैया पर पड़े न कुछ बोल-समझ पाते थे और न ही किसी को पहचान सकते थे। यह अलजाइमर भी उन्हें रक्षा मंत्री के रूप में हमारी सेना के जवानों की विकट जीवन दशा को जानने-समझने के लिए बार-बार उनकी सियाचिन ग्लेशियर यात्राओं की भी देन था। इस हिसाब से देखें तो उनका निधन हम सबके लिए दुखद होने के साथ ही पिछले एक दशक से मेडिकल साइंस की त्रासदी झेल रहे  जार्ज साहेब की आत्मा की मुक्ति भी है, लेकिन वह जिस हालत में भी थे, हम जैसे लोगों और दुनिया भर के, खासतौर से दक्षिण पूर्व एशिया के संघर्षशील लोगों के लिए प्रेरणा और आश्वासन थे कि जार्ज अभी जिंदा है।

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