- डी. कृष्ण राव
कोलकाता। बंगाल विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के बाद सभी दल इस जोड़-घटाव में लगे हैं कि कौन आगे, कौन पीछे रहेगा। नतीजे क्या होंगे, इसे समझ लीजिए। इसका आकलन राजनीतिक विश्लेषक भी कर रहे हैं। परिणाम के आकलन-अनुमान के सबके अपने-अपने तरीके होंगे। यहां हम एक चुनावी विश्लेषक के जरिये तीसरे चरण की स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे।
चुनाव के 2 दिन पहले से तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने लगभग अपनी हर सभा में एक बात दोहराती रहीं कि भाजपा के हैदराबादी एक दोस्त और यहां फुरफुरा शरीफ का एक छोकरा आपस में मिलकर बंगाल में मुसलमान वोटों का विभाजन कर रहे हैं। दोनों की मंशा भाजपा को लाभ पहुंचाने की है। उनका इशारा ओवैसी और अब्बास सिद्दीकी की ओर था। ममता बनर्जी का यह शक तीसरे चरण के चुनाव में लगभग सही साबित होता दिख रहा है।
इसे ऐसे समझें जब-जब सत्ताधारी दल ने चुनाव आयोग में सर्वाधिक शिकायतें कीं, तब-तब उसकी पराजय हुई। 2011 का विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है। उसी वर्ष 34 साल से सत्ता में जमी वाम मोरचा की सरकार का पतन हुआ था और ममता बनर्जी ने सत्ता दखल कर ली थी। उस साल चुनाव में गड़बड़ी की सर्वाधिक शिकायतें वाम मोरचा की ओर की गयी थीं। तीसरे चरण में चुनाव में गड़बड़ी की कुल 1802 शिकायतें दर्ज की गयी, जिनमें 1507 शिकायतें अकेले ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की ओर से दर्ज करायी गयीं।
तीसरे चरण में 3 जिलों की 31 सीटों- हावड़ा ग्रामीण की 7, हुगली ग्रामीण की 8 और दक्षिण 24 परगना की 16 सीटों पर वोट पड़े। अगर इन सीटों के डेमोग्राफी को देखें तो पता चलता है कि 31 सीटों में से 27 सीटों पर लगभग 40% मुसलमान मतदाता हैं। हावड़ा जिला के उलूबेरिया में 40%, श्यामपुर में 22%, आमता, जगतबल्लवपुर, और बाघनान मैं 40% से ज्यादा मुसलमान वोटर हैं। हुगली जिला के आरामबाग में 21%, जंगीपाड़ा, हरिपाठ, खानाकुल मैं लगभग 30% मुसलमान मतदाता हैं। तृणमूल के सबसे बड़े गढ़ के रूप में जाने जाने वाले दक्षिण 24 परगना जिले की जिन 16 सीटों पर तीसरे चरण में वोटिंग हुई, लगभग सभी सीटों पर औसतन 40% मुसलमान मतदाता हैं। बारुईपुर पश्चिम में 30%, वासंती में 44%, जयनगर में 47%, कैनिंग पूरब में 67 प्रतिशत, कैनिंग पश्चिम में 44%, मोगरा पूरब में 48%, मोगरा पश्चिम में 56 प्रतिशत, और डायमंड हार्बर में 44% मुसलमान मतदाता हैं।
2011 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जब ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं, उस समय से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक इन 31 सीटों पर ममता बनर्जी मुसलमान मतदाताओं पर पकड़ बनाये हुई थीं। इसलिए कि मुसलमानों का मत पूरी तरह ममता की तरफ होता था। हिंदू इलाकों में हमेशा गड़बड़ी करने का आरोप लगता था। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय से स्थिति में कुछ बदलाव देखा गया। 31 सीटों में से भाजपा महज दो पर और बाकी 29 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस को बढ़त मिली थी।
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद स्थिति में काफी तेजी से परिवर्तन हुआ है। मुसलमान वोटर ममता के साथ इसलिए थे कि ममता ही भाजपा को रोक सकेंगी। ममता की मुस्लिम आइडेंटिटी पॉलिटिक्स पर 2019 के लोकसभा चुनाव में पानी फिर गया। सीधे कहें तो यह ममता के लिए अलर्ट था। भाजपा को रोकने में ममता सक्षम नहीं रहीं। भाजपा को 42 में से 18 सीट मिल गईं। तब मुसलमानों को लगने लगा कि दीदी अब भाजपा को रोकने में नाकाम हो रही हैं। इसके अलावा मुसलमानों के एक वर्ग में ममता के खिलाफ काफी असंतोष था। खासकर युवा वर्ग में, जिसके पास काम धंधा नहीं था और इसी मौके का फायदा उठाते हुए फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने युवा वर्ग को अपने प्रभाव में लेना शुरू किया। धीरे-धीरे अब्बास के जलसे और उनकी बैठकों में लोग, खासकर युवा वर्ग जुटने लगे।
साल भर में अब्बास सिद्दीकी ने बंगाल के 6 जिलों, खासकर दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना, हावड़ा और हुगली मैं मजबूत संगठन बनाया। लॉकडाउन और तूफान के समय गरीबों तक राशन और सारी सुविधाएं उपलब्ध करायीं। इसी कारण मुसलमानों का बड़ा हिस्सा अब्बास सिद्दीकी के साथ जाते दिख रहा है। दूसरी ओर हिंदुओं के वोट पाने के लिए ममता जब धीरे-धीरे मंत्रोच्चारण करने लगीं और मंदिरों में जाने लगीं, उससे मुसलमानों को उनके सेकुलर होने पर संदेह होने लगा। अभी तक मुसलमान यही सोचते थे कि ममता केवल उनके लिए ही हैं। उस सोच पर निकलने लगा मुसलमान का एक बहुत बड़ा हिस्सा आईडेंटिटी पॉलिटिक्स की तरफ बढ़ते लगे और अब्बास सिद्दीकी उसका फायदा उठाते मुझे इंडियन सेकुलर फ्रंट। नामक एक राजनीतिक दल का जाम दे दिया इस चुनाव में माकपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर जिन जिलों में सबसे ज्यादा प्रभाव डाल सकते हैं उसमें से दक्षिण 24 परगना हावड़ा हुगली और उत्तर 24 परगना है।
बंगाल में तीसरे चरण के चुनाव में एक चीज नजर आयी कि जहां-जहां इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) काफी मजबूत है, उन जगहों पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सेकुलर फ्रंट के लोगों पर हमला करने की कोशिश की। अब्बास सिद्दीकी के समर्थक युवा भी चुप नहीं बैठे। जहां जहां तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने उन पर हमला करने की कोशिश की, वहां-वहां उन्होंने भी उन पर पलटवार किया। फालता, कैनिंग पूर्व, कैनिंग पश्चिम, मोगरा हाट, डायमंड हार्बर समेत कई जगहों पर बमबारी और मारपीट की जो घटनाएं हुईं, सभी लगभग अब्बास सिद्दीकी के लड़कों और तृणमूल के कार्यकर्ताओं के बीच हुई।
2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा बंगाल के हावड़ा, हुगली, दक्षिण 24 परगना की जिन सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही थी, उन सीटों पर तीसरे चरण के चुनाव में देखा गया कि भाजपा ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है। तृणमूल को टक्कर देने की स्थिति में पहुंच गई है। इसके नतीजे के के तौर पर दिखा कि तृणमूल के 5 उम्मीदवारों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। खासकर आरामबाग, खानाकुल और उलुबेरिया में।
31 सीटों में से जिन 27 सीटों पर मुसलमानों का प्रभाव बहुत ज्यादा है, उनमें कम से कम 15 सीटों पर मुसलमानों का वोट सीधे-सीधे दो फाड़ होता दिखा। इन मुस्लिम प्रभावित इलाकों में हिंदू कभी ठीक से वोट नहीं डाल पाते थे, लेकिन इस बार आईएसएफ और तृणमूल कांग्रेस की आपसी लड़ाई में हिंदुओं का 35 प्रतिशत वोट मत ईवीएम तक पहुंच गया, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। इससे सबसे ज्यादा क्षति तृणमूल कांग्रेस को होती दिख रही है।
तृणमूल के गढ़ मानी जाने वाली इन बंगाल की 31 सीटों में से कई सीटों पर तृणमूल कांग्रेस अपना एजेंट तक नहीं बैठा पायी। प्रायः यह देखा गया है कि तृणमूल के इस गढ़ में सुबह मतदान शुरू होते ही विपक्षी पार्टी के लोग बस्ता भर-भर कर शिकायतें चुनाव आयोग तक पहुंचाते थे, लेकिन इस बार जितनी शिकायतें जमा हुई हैं, उसमें 90% शिकायतें सत्ताधारी पार्टी की ओर से की गई हैं।
एक और चीज वोटिंग के दौरान नजर आयी। कैनिंग पूर्व के तृणमूल विधायक शौकत मुल्लाह, खानाकुल विधानसभा के तृणमूल के शेर नाजिम उल हक जैसे तृणमूल नेता चुनाव के दिन बड़े ठाठ से घूमते रहे हैं। उन्हें इस बार भाजपा के लोगों से उलझते देखा गया। सेंट्रल फोर्स और चुनाव आयोग के खिलाफ वे शिकायतें दर्ज करते नजर आए। इन सारी चीजों से साफ हो , जाता है कि तीसरे चरण की 31 सीटें, जो कभी जहां तृणमूल का गढ़ होती थीं, वे अब तृणमूल का गढ़ नहीं रहीं।