सच बात यही है कि कोई दल/ नेता कितना भी कॉर्पोरेट के खिलाफ बोल ले, कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर हर दल को उद्योगपतियों से मदद की जरूरत पड़ती है। कम्युनिस्ट पार्टियां भी अंबानी-अडानी, टाटा-बिड़ला से पैसे न ले छोटे-मझौले पांच-दस हजार करोड़ वाले व्यवसायियों से पैसे लेती ही हैं। कोई कितना भी आदर्श बघार ले, सच्चाई यही है कि पॉलिटिकल पार्टी को चलाने के लिए पैसे की जरूरत होती है। आदि काल से, चाहे भामा शाह हो या कमल मोरारका, फेडरिक एंगेल्स हों या बद्री विशाल; पित्ती वणिक तबके के सहयोग के बिना न तो कोई राजसत्ता चली है और न ही किसी क्रांति की लौ लंबे समय तक जलती रह पाई है।
ओल्ड मोंक शराब बनाने वाली कंपनी के मालिक मोहन मेकिंस खुले तौर पर इंदिरा गांधी को समर्थन करने के लिए विख्यात थे। वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं- “इंदिरा गांधी और समाजवादी नेता राज नारायण में बगावत वाले दिनों में राज नारायण का खाना मोहन मेकिंस के घर बनता था। राज नारायण मोहन मेकिंस की बहू को अपने बेटे की पत्नी की तरह मानते थे और उसे बहू कहकर ही संबोधित करते थे।”
युवा तुर्क चंद्रशेखर तक कॉर्पोरेट से मदद लेने में इस मामले में अछूते नहीं थे। न्यूज 24 के चर्चित पत्रकार राजीव रंजन सिंह कहते हैं- “एक बार कलकत्ता में एक होटल में धीरू भाई अंबानी और चंद्रशेखर जी की गुपचुप मीटिंग हुई। मीडिया को जब किसी तरह इसकी भनक लगी तो होटल के बाहर पत्रकार इकट्ठे हो गए। पत्रकारों ने जब चंद्रशेखर से धीरू भाई अंबानी से मुलाकात के बारे में पूछा तो अपने से जुड़े हर तरह के संबंधों को स्वीकारने वाले चंद्रशेखर ने इस मुलाकात को स्वीकारने में तनिक भी देर नहीं किए।”
चंद्रशेखर से जुड़ा एक और वाकया है। इंडिया टुडे ग्रुप के यूट्यूब चैनल ‘दी लल्लनटॉप’ को दिए इंटरव्यू में जेएनयू के प्रोफेसर पुष्पेश पंत कहते हैं- “एक दिन वो चंद्रशेखर के भोंडसी आश्रम में खाना खा रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि सपा नेता अमर सिंह एक पैसे से भरा लिफाफा चंद्रशेखर जी की तरफ बढ़ाते हैं। यह देखकर पुष्पेश पंत के मुंह से थोड़ी हंसी छूटी। पुष्पेश पंत को हंसता देख चंद्रशेखर जी बोले- तुम जो यह दाल-रोटी खा रहे हो कभी सोचा है इसका पैसा कहां से आता है!”
पिछले दिनों अमर सिंह का एक पुराना इंटरव्यू देख रहा था। अमर सिंह बता रहे थे- “गुजरात में खाम समीकरण बनाकर जब माधव सिंह सोलंकी गुजरात में शानदार मेजॉरिटी हासिल किए थे। चुनाव परिणाम के बाद दिल्ली के मौर्या शेरेटन होटल में जो पहली पार्टी हुई उसमें एक टेबल पर तीन लोग खाना खा रहे थे। वो तीन लोग माधव सिंह सोलंकी, धीरू भाई अंबानी और इंदिरा गांधी थी।”
इस देश में कॉर्पोरेट के खिलाफ एक्शन लेने की किसी ने हिम्मत की तो वो विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। वित्त मंत्री रहते रिलायंस के कर चोरी के खिलाफ विश्वनाथ प्रताप सिंह जब इनकम टैक्स को रेड करने रिलायंस हेडक्वार्टर मुंबई भेजे थे तो कहा जाता है कि इनकम टैक्स की टीम जब मुंबई एयरपोर्ट पहुंची तो किसी ने बड़े अंबानी को फोन कर इसकी सूचना दे दी, फोन रखते ही धीरू भाई अंबानी को पैरालिसिस का झटका लगा और वे लकवाग्रस्त हो गए तथा शारीरिक तौर पर उससे आजीवन कभी उबर नहीं पाए।
बिहार पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्य जग नारायण सिंह यादव एकबार मुझे बताए थे कि “ब्राह्मण, ब्यूरोक्रेसी और बनिया इस तीन ‘बी’ (B) के बिना राज्य चल ही नहीं सकता है। राज्य की दक्षता की परीक्षा इसी से होती है कि राज्य इन तीनों को ज्यादा से ज्यादा नियंत्रित कर कैसे अपना काम निकालता है।”
राजीव सिंह जादौन